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________________ PATI कैसे रहै । अथवा अन्यका ल्याय देना ठहरावोगे, सौ कौन ल्याय दे, उनके मनकी कौन जाने । मो०मा प्रकाश पूर्व उपवासादिककी प्रतीज्ञा करी थी, ताका कैसे निर्वाह होय । जीवअंतराय सर्व प्रतिभासे, के से आहार ग्रहें इत्यादि विरुद्ध भासे है । बहुरि वह कहै है-आहार ग्रहै हैं, परंतु काहूको दीसे | नाहीं । सो आहार ग्रहणको निंद्य जान्या, तब घाका न देखना अतिशयविषै लिख्या। सो | उनकै निंद्यपना रह्या अर और न देखे हैं, तो कहा भया। ऐसे अनेक प्रकार विरुद्ध उपजे है। | बहुरि अन्य अविवेक कहै हैं—केवलोके नीहार कहै हैं, रोगादिक भया कहै हैं, अर | कहें, काहू. तेजोलेश्या छोरी ताकरि वर्द्धमान स्वामीकै पेढुंगाका (पेचिस का) रोग भया | ताकरि बहुत बार नीहार होने लागा। सो तीर्थंकर केवलीकै भी ऐसा कर्म का उदय रह्या, । अर अतिशय न भया तो इंद्रादिकरि पूज्यपना कैसें सोभै । बहुरि नीहार कैसे करें, कहा | करें कोऊ संभवती बात नाहीं । बहुरि जैसे रागादिकरि युक्त छदमस्थक क्रिया होय, तैसे । केवलीके क्रिया ठहरावै हैं । वर्द्धमानखामी का उपदेश वि हे गौतम' ऐसा बारंबार कहना | ठहरावे हैं । सो उनकै तो अपना कालविणे सहज दिव्यध्वनि हो है, तहां सर्वौं उपदेश हो है गौतमकों सम्बोधन कैसे बने । बहुरि केवलीकै नमस्कारादिक क्रिया ठहरावे हैं, सो अनुराग विना धंदना सम्भवै नाहीं । बहुरि गुणाधिककौं पंदना सम्भवै, सो उनसौं कोई गुणाधिक रह्या २२६
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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