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मो.मा.
प्रकाश
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ज्ञान भए पहले केश नख बधै थे, सो बधैं (ब) नाहीं । छाया होती थी, सो होती नाहीं । शरीरविषै निगोदी थी, ताका अभाव भया । बहुत प्रकारकरि जैसे शरीरकी अवस्था अन्यथा
भई, तैसें आहारबिना भी शरीर जैसाका तैसा रहै ऐसी भी अवस्था भई । प्रत्यक्ष देखौ, औ३ रनिकों जरा व्यापै तब शरीर शिथिल होय जाय, इनका आयुका अंतपर्यंत शरीर शिथिल न
होय । तातें अन्य मनुष्यनिका शरीर पर इनका।शरीर की समानता संभवै नाहीं । बहुरि जो तू कहेगा- देवादिकके आहार ही ऐसा है, जाकरि बहुतकालकी भूख इनके भूख मिटै;काहेतें मिटी अर शरीर पुष्ट कैसे रह्या। ताकौं कहिए है-जो असाताका उदय मंद होनेते मिटी| अर समय समय परमोदारिक शरीर वर्गणाका ग्रहण हो है सो अब तो कर्म प्रहार है सो । ऐसी वर्गणाका प्रहण हो है जाकरि क्षुधादिक व्यापे नाही वा शरीर शिथिल होय नाहीं । । सिद्धांतविणे याहीकी अपेक्षा केवलीकौं आहार कह्या है । पर अन्नादिकका आहार तो शरीरकी । पुष्टताका मुख्य कारण नाहीं। प्रत्यक्ष देखो, कोऊ थोरा आहार करै शरीर पुष्ट बहुत होय, कोऊ
बहुत प्रहार करें शरीर क्षीण रहै । बहुरि पवनादि साधने वाले बहुतकालताई आहार न लें श। रीर पुष्ट रह्या करें, वा ऋद्धिधारी मुनि उपवासादि करें शरीर पुष्ट बन्या रहै सो केवलीके तौ
सर्वोत्कृष्टपमा है । उनके अन्नादिक बिना शरीर पुष्ट बना रहै, तो कहा आश्चर्य भया। वहुरि 1 केवली कैसे आहारकों जाय, कैसे जाचें । बहुरि वै प्रहारकों जाय, तव समवसरण खाली
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