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________________ मो.मा. प्रकाश है। सो बिहार तो विहायोगति उदयतें हो है, अर पीडाका उपाय नाही, अर विना इच्छा भी | || | किसी जीवकै होता देखिए है । बहुरि आहार है, सो प्रकृतिका उदयतें नाहीं क्षुधाकरि पीड़ित भए ही ग्रहण करै है । बहुरि आत्मा पवनादिककों प्रेरै तब ही निगलना हो है, तातें विहारवत् । आहार नाहीं । जो कहोगे-सातावेदनीयकै उदयतें आहार ग्रहण हो है, सो बने नाहीं। जो | जीव क्षुधादिकरि पीड़ित होय, पीछे आहारादिक ग्रहणतें सुख मानें ताके आहारादिक | साताके उदयतें कहिए । आहारादिक सातावेदनीयके उदयतें स्वयमेव होय । | ऐसे तो है नाहीं। जो ऐसें होय, तो सातावेदनीय का मुख्य उदय || | देवनिकै है, ते निरंतर आहार क्यों न करें । बहुरि महामुनि उपवासादि करें, तिनके | साताका भी उदय अर निरंतर भोजन करनेवालों के भसाताका भी उदय संभवै। तातें जैसे | विना इच्छा विहायोगतिके उदयते विहार संभवै, तैसें विना इच्छा केवल सातावेदनीयहीके | उदयतें आहारका ग्रहण संभवै नाहीं। बहुरि वह कहे हैं, सिद्धांतविषै केवली के क्षुधादिक ग्यारह परीषह कहे हैं, तातै तिनकै क्षुधाका सदभाव संभवे है। बहुरि पाहारादिक बिना तिनकी! उपशांतता कैसे होय, तातै तिनकै आहारादिक माने हैं। ताका समाधान, कर्मप्रकृतीनिको उदय तीव्रमंद भेद लिए हो है। तहां अतिमंद होते, तिसका उदयजनित | कार्यकी व्यक्ततः भासे नाहीं । ताते मुख्यपन अभाव कहिए, तारतम्यविषै सद्भाव कहिए। जैसें ।।। ESincerapieoxcxo0IMootocto30-4000-3000MgXooooooooo05000000000000saloosa
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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