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प्रकाश
al भव जानने । बहुरि वै कहै हैं, इनको छेड़ने नाहीं । सो झूठ कहने वाला ऐसे ही कहै । बहुरि |
|| जो कहोगे -दिगम्बरवि जैसें तीर्थंकरके पुत्री, चक्रवर्तिका मानभंग इत्यादि कार्य कालदो|पत भया कहै हैं, तैसें ए भी भए । सो ३ कार्य तो प्रमाणविरुद्ध नाहीं । अन्यके होते थे सो | | महंतनिकै भए, तातें कालदोष भया कहे हैं । गर्भहरणादि कार्य प्रत्यक्ष अनुमानादितें विरुद्ध, | तिनके होना कैसे संभवै । वहुरि अन्य भी घने ही कथन प्रमाणविरुद्ध कहे हैं। जैसे कहे हैं, सर्वार्थसिद्धिके देव मनही प्रश्न करें हैं, केवली मनहीत उत्तर दे हैं। सो सामान्य ही जीवकै मनकीवात मनःपर्ययज्ञानीविना जानि सके नाहीं। केवलीके मनकी सर्वार्थसिद्धिके देव कैसें जाने। बहुरि केवलीके भावमनका तो अभाव है, द्रव्यमन जड़ आकारमात्र है, उत्तर कौन दिया। तातें मिथ्या है। ऐसे अनेक प्रमाणविरुद्ध कथन किए हैं, तातें तिनके आगम कल्पित ही जानने।
बहुरि श्वेतांबरमतवाले देवगुरुधर्मका स्वरूप अन्यथा निरूपै हैं । तहां केवलीके क्षुधादिक || दोष कहें। सो यह देवका स्वरूप अन्यथा है । काहेते क्षुधादिक दोष होते पाकुलता होय, तब अनंतसुख कैसे बनें। बहुरि जो कहोगे, शरीरकों क्षुधा लागै है आत्मा तद्रूप न हो है, तो | क्षुधादिकका उपाय आहारादिक काहेर्को ग्रहण किया कहो हो । क्षुधादिकरि पीड़ित होय, तब ही आहार ग्रहण करै । बहुरि कहोगे, जैसे कर्मोदयतें विहार हो है, तैसें ही माहार ग्रहण हो
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