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________________ मोमा CHEMOMore মজায় किसीकों आए, पुत्र किसीके भया, इत्यादि असंभव भासै । बहुरि माता तो दोय भई भर पिता तो एक ब्राह्मणही रह्या । जन्मकल्याणादिविषे वाका सन्मान किया, के अन्य कल्पित पिता का किया । सो तीर्थकरके दोय पिताका कहना, महाविपरीत भासे है। सर्वोत्कृष्टपदके धारककै ऐसे बचन सुनने भी योग्य नाहीं । बहुरि तीर्थंकरकेभी ऐसी अवस्था भई, तो सर्वत्र ही अन्यस्त्रीका गर्भ अन्यस्त्रीके धरि देना ठहरें, तो वैष्णव जैसे अनेक प्रकार पुत्र पुत्रीका | । उपजना बतावे हैं, तैसें यह कार्य भया । सो ऐसे निकृष्ट कालविर्षे तो ऐसे होय ही नाही, । तहां होना कैसे संभवै । तात यह मिथ्या है। बहुरि मल्लितीर्थ करकौं। कन्या कहै हैं । सो मुनि देवादिककी सभा विषै स्त्रीका स्थिति करना उपदेश देना न संभवै, वा स्त्रीपर्याय हीन है सो उत्कृष्ट तीर्थ करपदधारककै न बने । बहुरि तीर्थंकरके नग्नलिंग ही कहै हैं, सो स्त्रीके नग्नपनो न संभवै । इत्यादि विचार किए असंभव भास है। ॥ बहुरि हरिक्षेत्रका भोगभूमियांकों नरकि गया कहें । सो बंधवर्णनविषै तो भोगभूमियांके देवगति देवायुहीका बंध कहें, नरकि कैसे भया । सिद्धांतविणे तो अनंतकालविर्षे जो बात होय, सो भी कहें । जैसें तीसरे नरक तीर्थंकर प्रकृतिका सत्व कह्या, भोगभूमियांकै नरक मायु मतिका बंध न कया, सो केवली भूलें तौ नाहीं । तातें यह मिथ्या है। ऐसें सर्व अछेरे असं Sures-0080010330000000000000010010-8000-00040MOOsiaopm000000000000000000000000
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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