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________________ मो.मा. प्रकाश से नीच उच्चगोत्रका उदय ठहरा । ऐसे होते असंयमी मनुष्य तीर्थकर क्षत्रियादिकके भी नीच-|| गोत्रका उदय ठहरै । जो उनके कुल अपेक्षा उच्चगोत्रका उदय कहोगे तो चांडालादिककै भी कुल अपेक्षा ही नीचगोत्रका उदय कहो । ताका सद्भाव तुम्हारे सूत्रनिविषै भी पंचम गुणस्थानपर्यत ही कया है । सो कल्पित कहनेमें पूर्वापरविरुद्ध होय ही होय । तातें शूद्रनिकै मोक्षका कहना मिथ्या है। | ऐसें तिनहुनें सर्वकै मोक्षकी प्राप्ति कही, सो ताका प्रयोजन यह है जो सर्वका भला मनावना मोक्षका लालच देना पर अपना कल्पितमतकी प्रवृत्ति करनी । परंतु विचार किए मिथ्या ।। भासे है। बहुरि तिनके शास्त्रनिविषै 'अछेरा' कहै हैं । सो कहें हैं-हुडावसर्पिणीके निमितते भए हैं, इनकों छेड़ने नाहीं । सो कालदोषते केई बात होय परंतु प्रमाणविरुद्ध तो न होय || जो प्रमाणविरुद्ध भी होय, तो आकाशके फूल गधेके सींग इत्यादिका होना भी बनें सो संभवै । नाहीं । तातें वे जो अछेरा कहै हैं सो प्रमाणविरुद्ध हैं। काहेते, मो कहिए है,- ... वर्द्धमानजिन केतेककाल ब्राह्मणीके गर्भविर्षे रहि पीछे क्षत्रियाणीके गर्भविषे बधे ऐसा || कहै हैं । सो काइका गर्भ काहकै धरया प्रत्यक्ष भासे नाही, अनुमानादिकमें आवै नाहीं।। बहुरि तीर्थ करके भया कहिए, तो गर्भकल्याणक काहूकै घर भया, जन्मकल्याणक कारकै || भया । कतेक दिन रत्नवृष्ट्यिादिक काहूकै घर भई, केतेक दिन काहूकै भई । सोलह स्वप्न । २२३ TadkaB000000108700000000000000WOOKasoorado00000000000000000000000000000028MORE
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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