SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 686
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मो.मा. प्रकाश - KarineKBCMDOHOCKOOPERAKHP-croreco-Roornoxila-KOCHOOMICROOKEMOR00100aclotadoot कहना मिथ्या वचन है। ___ बहुरि स्रीकों मोक्ष कहें, सो जातें सप्तमनरकगमनयोग्य पाप न होय सके, ताकरि मोक्ष । का कारण शुद्धभाव कैसे होय सके। जाते जाके भाव दृढ़ होय, सो ही उत्कृष्ट पाप वा धर्म || | उपजाय सके है । बहुरि स्त्रीके निशंक एकांतविष ध्यान धरना, सर्वपरिग्रहादिकका त्याग करना | संभवे नाहीं। जो कहोगे, एकसमयविषे पुरुषवेदी वा स्त्रीवेदी वा नपुंसकवेदीकों सिद्धि होनी सिद्धांतविर्षे कही है, तातें स्त्रीकों मोक्ष मानिए है। सो यहां भाववेदी है कि द्रव्यवेदी है। || जो भाववेदी है तो हम माने ही हैं । द्रव्यवेदी है, तो पुरुषस्त्रीवेदी तो लोकवि प्रचुर दीखे । हे नपुंसक तो कोई बिरला दीखे है । एक समयविषै मोक्ष जानेवाले इतने नपुंसक केसें । संभवै । तातै द्रव्यवेद अपेक्षा कथन बनें नाहीं । बहुरि जो कहोगे, नवमगुणस्थानताई वेद कहे है, सो भी भाववेद अपेक्षा ही कथन है । द्रव्यवेदअपेक्षा होय तो चौदहवां गुणस्थानपर्यंत बेदका सदभाव संभवै । तातें स्त्रीकै मोक्षका कहना मिथ्या है। बहुरि शूद्रनिकों मोक्ष कहें। सो चांडालादिककों गृहस्थ सन्मानादिककरि दानादिक कैसे ॥ दें, लोकविरुद्ध होय । बहुरि नीचकुलवालोंके उत्तम परिणाम न होय सकें। बहुरि नीचगोत्रकर्मका उदय तो पंचम गुणस्थानपर्यंत ही है । ऊपरिकेगुणस्थान चढ़े बिना मोक्ष कैसे होय । जो कहोगे । संयम धारे पीछे याकै उच्चगोत्रका उदय कहिए, तो संयम धारनेकी वा न धारनेकी अपेक्षा । २२१
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy