________________
मो.मा.
प्रकाश
होनी माने हैं, सो बने नाहीं । सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्रकी एकता मोक्षमार्ग है । सो वे सम्यहै दर्शनका स्वरूप तो ऐसा कहै हैं,
अरहंतो महादेवो जावज्जीवं सुसाहणो गुरुणो ।
जिणपण्णत्तं तत्तं ए सम्मत्तं मए गहिएं ॥१॥ ___ सो अन्यलिंगीकै अरहंत देव, साधु गुरु, जिनप्रणीत तत्वका मानना कैसे संभवै । तब । सम्यक्त भी न होय, तो मोक्ष कैसे होय । जो कहोगे अन्तरंगके श्रद्धान होनतें सम्यक्त तिनके
हो है, सो विपरीत लिंगधारककी प्रशंसादिक किए भी सम्यक्तकों अतीचार कह्या है तो सांचा श्रद्धान भए पीछे भाप विपरीतलिंगका धारक कैसे रहें। श्रद्धान भए पीछे महाव्रतादि अंगीकार किए सम्यकचारित्र अन्यलिंगवि कैसे बने। जो अन्य लिंगविषे भी सम्यकचरित्र हो है, तो जैनलिंग अन्यलिंग समान भया। तातें अन्यलिंगीकों मोक्ष कहना मिथ्या है । बहुरि गृहस्थकों मोक्ष कहें, सो| | हिंसादिक सर्व सावयका त्याग किए सम्यकचारित्र होय, सो सर्व सावद्ययोगका त्याग किए गृहस्थ । पनौ कसै संभवै । जो कहोगे-मंतरंगका त्याग भया है, तो यहां तो तीनूं योग का त्याग करै है कायकरि त्याग कैसे भया। बहुरि बाह्यपरिग्रहादिक राखे भी महाव्रत हो है, सो महाव्रतनिविषै तो बाह्यत्याग करनेकी ही प्रतिज्ञा करिए है, त्याग किए बिना महाव्रत न होय । महाव्रत बिना छठाआदि गुणस्थान न होय सके, तो मोक्ष कैसे होय । तातै गृहस्थकों मोक्ष || २२१