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________________ प्रकाश मो.मा. विषयादि सेवने का उपदेश दें । तहां प्रालब्धि बतावें, सो बिना क्रोधादि भए आपही लरना आदि कार्य होंय, तो यह भी मानिए सो तो होंय नाहीं । बहुरि लरना आदि कार्य होते. क्रोधादि भए मानिए तौ जुदे ही क्रोधादि कौन हैं, तिनका निषेध किया। तातै बने नाहीं, पूर्व्वा पर विरोध है । गीताविषै वीतरागता दिखाय लरने का उपदेश दिया, सो यह प्रत्यक्ष विरोध भासे है । बहुरि ऋषीश्वरादिकनिकरि श्राप दिया बतावें, सो ऐसा क्रोध किए निन्द्यपना कैसें न भया । इत्यादि जानना । बहुरि "अपुत्रस्य गतिर्नास्ति" ऐसा भी कहैं अर भारतविषै ऐसा भी कहा है, - अनेकानि सहस्राणि कुमारब्रह्मचारिणाम् । दिवं गतानि राजेन्द्र अकृत्वा कुलसन्ततिम् ॥ १ ॥ यहां कुमारब्रह्मचारीनिकौं स्वर्ग गए बताए, सो; यह परस्पर विरोध है । बहुरि ऋषीश्वर भारतविषै तौ ऐसा कह्या, मद्यमांसाशनं रात्रौ भोजनं कन्दभदणम् । कुर्वन्ति वृथास्तेषां तीर्थयात्रा जपस्तपः ॥ १ ॥ वृथा एकादशी प्रोक्ता वृथा जागरणं हरेः । वृथा च पौष्करी यात्रा कृत्स्नं चान्द्रायणं वृथा ॥२॥ २१७
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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