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________________ मो.मा. प्रकाश దంచుంటుందని ముందుంచినందంగా రండి सुपार्श्वमिंद्र हवे शक्रमजितं तद्वर्द्धमानपुरुहूतमिंद्रमाहुरिति स्वाहा । ओं नग्न सुधीरं दिग्वाससं | ब्रह्मगर्भ सनातनं उपैमि वीरं पुरुषमहतमादित्यवर्णं तमसः परस्तात् स्वाहा । ओं खस्तिन इंद्रो वृद्धश्रवा खस्तिनः पूषा विश्ववेदा स्वस्तिनस्ताक्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्तिनः पूषा विश्ववेदाः खस्तिनस्ताक्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्तिनो बृहस्पतिर्दधातु। दीर्घायुस्त्वायुवमायुर्वा शुभजातायु ओं रक्ष रक्ष मरिष्टनेमिः स्वाहा । वामदेव शान्त्यर्थमनुविधीयते सोऽस्माकं अरिष्टनेमिः स्वाहा।। ___यहां जैनतीर्थंकरनिके जे नाम हैं तिनिका पूजन कह्या । बहुरि यहां यह भास्या, जो इनकै | | पी वेदचरना भई है। ऐसे अन्यमतनिकी साचितें भी जिनमतकी उत्तमता अर|प्राचीनता दृढ भई । भर जिनमतकों देखें वै मत कल्पित ही भारौं। तातें अपना हितका इच्छक होय, | सो पक्षपात छोरि सांचा जैनधर्मकौं अंगीकार करो। बहुरि अन्य मतनिविर्षे पूर्वापरविरोध | भारौं है । पहले भवतार वेदका उद्धार किया। तहां यज्ञादिकवि हिंसादिक पोषे । भर बुद्धा| वतार यज्ञका निंदक होय, हिंसादिक निषेधे। बृषभावतार वीतराग संयमका मार्ग दिखाया | कृष्णावतार/परस्त्रीरमणादि विषय कषायादिकनिका मार्ग दिखाया। सो अब यह संसारी कौनका कह्या करे, कौंनकै अनुसारि प्रवत्त, अर इन सब अवतारनिकों एक बतावै सो एक ही कदाचित् कैसैं कदाचित् कैसे कहे वा प्रवत तो याकै उनके कहनेकी वा प्रवर्त्तनेकी प्रतीति कैसैं आवै। बहुरि कही क्रोधादिकषायनिका वा विषयनिका निषेध करें, कही लरनेका वा ६|| २१६
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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