SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 677
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मो.मा. प्रकाश కాని నిర్మాణం గుండం | यो नयनयुगमिदं न्यस्य नासाग्रदेशे” इत्यादि बुद्धावतारका स्वरूप अरहंत देव सारिखा। लिख्या है, सो ऐसा स्वरूप पूज्य है तौ अरहंतदेव पूज्य सहज ही भया। ___ बहुरि काशीखंडविर्षे दिवोदास राजा. संबोधि राज्य छुड़ायो। तहाँ नारायण तौ विनयकीर्ति जती भया, लक्ष्मी कों विनयश्री अर्जिका करी गरुड़कौं श्रावक किया, ऐसा कथन है । सो जहां संबोधन करना भया, तहां जैनी भेष बनाया । तातें जैन हितकारी प्राचीन प्रतिभासे है । बहुरि 'प्रभासपुराण' विषे ऐसा कह्या है "भवस्य पश्चिमे भागे वामनेन तपः कृतम् । तेनैव तपसाकृष्टः शिवः प्रत्यक्षतां गतः ॥१॥" “पद्माससनसमासीनः श्याममूर्तिदिगम्बरः । नेमिनाथः शिवोथैवं नाम चक्रेऽस्य वामनः ॥ २॥" "कलिकाले महाघोरे सर्वपापप्रणाशकः । _ दर्शनात्स्पर्शनादेव कोटियज्ञफलप्रदः ॥३॥" यहां वामनौं पद्मासन दिगम्बर नेमिनाथका दर्शन भया कह्या । धाहीका नाम शिव कह्या। | बहुरि ताके दर्शनादिकर्ते कोटियज्ञका फल कह्या सो ऐसा नेमिनाथका स्वरूप तो जैनी प्रत्यक्ष | माने हैं, सो प्रमाण ठहरथा । बहुरि प्रभासपुरणविषे कह्या है, పరారంభం కానుంది.
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy