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मो.मा. प्रकाश
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ECC:00-00-0000 200 నిరంతరం
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कहें । बहुरि 'रुद्रयामलतंत्र' विषै भवानीसहस्रनामविषै ऐसें कह्या है,
"कुंडासना जगद्धात्री बुद्धमाता जिनेश्वरी।
जिनमाता जिनेन्द्रा च शारदा हंसवाहिनी ॥१॥" ___ यहां भवानीके नाम जिनेश्वरी इत्यादि कहे तातें जिनका उत्तमपना प्रगट भया । बहुरि 'गणेशपुराण' विषै ऐसे कह्य है,- .
“जैनं पाशुपतं सांख्यं ।” । बहुरि व्यासकृत सूत्रविषै ऐसा कह्या है
“जैना एकस्मिन्नेव वस्तुनि उभये प्ररूपयन्ति ।” . इत्यादि तिनिके शास्त्रनिविष जैन निरूपण है, तातें जैनमतका प्राचीनपना भास है। | बहुरि भागवतका पंचमस्कंधविषै ऋषभावतारका वर्णन है । तहां इनिकों करूणामय तृष्णादिरहित ध्यानमुद्राधारी सर्वाश्रमकरि पूजित कह्या है,ताकै अनुसारि अरहंत राजा प्रवृत्तिकरी ऐसा कहै हैं । सो जैसे रामकृष्णादि अवतारनिकै अनुसार अन्यमत, तैसें ऋषभावतारके अनुसार जैनमत, ऐसे तुह्मारे मतहीकरि जैन प्रमाण भया । यहां इतना विचार और किया चहिए-कृष्णादि अवतारनिकै अनुसारि विषयकषायनिकी प्रवृत्ति हो है । भाषभावतारकै अनुसार वीतराग सम्यभाव की प्रवृति ही है। यहां दोऊ प्रवृत्ति समान माने, धर्म अधर्मका विशेष न रहै अर विशेष माने भली होय जो अंगीकार करनी। बहुरि दशावतारचरित्रविषै-"बद्ध पद्मासनं
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ఫిరం