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________________ मो.मा. प्रकाश “रैवताद्रौ जिनो नेमियुगादिर्विमलाचले । ऋषीणामाश्रमादेव मुक्तिमार्गस्य कारणम् ॥ १॥" यहां नेमिनाथकों जिनसंज्ञा कही, ताके स्थानकों ऋषिका प्राश्रम मुक्तिका का कारण कह्या भर युगादिके स्थानौं भी ऐसा ही कह्या, ताते उत्तम पूज्य ठहरे। बहुरि 'नगरपुराण' विषै भवावताररहस्यविषै ऐसा कह्या है, "अकारादिहकारन्तं मू‘धोरेफसंयुतम् । नादबिन्दुकलाकान्तं चन्द्रमण्डलसन्निभम् ॥ १॥ एतदवि परं तत्वं यो विजानाति तत्त्वतः ।। संसारबन्धनं छित्वा स गच्छेत्परमा गतिम् ॥२॥ यहां 'अहं' ऐसे पदकों परमतत्व कह्या। याके जाने परमगतिकी प्राप्ति कही, सो 'मह' || पद जैनमतउक्त है । बहुरि नगरपुणविषै कह्या है, "दशभि जित्तैर्विप्रैः यस्फलं जायते कृते। मुनेरर्हत्सुभक्तस्य तत्फलं जायते कलो ॥१॥ | यहां कृतयुगविषे दश ब्राह्मणों को भोजन करानेका जेता फज कह्या, तेताफल कलियुगविषे अहंतभक्तमुनिके भोजन कराएका कह्या । ताते जैनी मुनि उत्तम ठहरे । बहुरि 'मनुस्मृति' विष ११४
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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