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________________ मो.मा. प्रकाश मौं का फल होगा । बहुरि कोऊ कहै-प्रयोजनभृत जीवादिक तत्त्वनिका अन्यथा श्रद्धान किए मिथ्यादर्शनादिक हो हैं, अन्यमतनिका श्रद्धान किए कैसे मिथ्यादर्शनादिक होय, ताका समाधान अन्यमतनिविषै विपरीति युक्ति बताय जीवादिक तत्वनिका स्वरूप यथार्थ न भासै यह | उपाय किया है, सो किस अर्थि किया है । जीवादि तत्त्वनिका यथार्थ स्वरूप भासै, तो वीतराग| भाव भएही महंतपनौ भासै । बहुरिजे जीव वीतरागी नाही,अर अपनै महंतता चाहें, तिनि सराग | भाव होते महंतता मनावनेके अर्थि कल्पित युक्तिकरि अन्यथा निरूपण किया है । सो अद्वैतब्रह्मादिकका निरूपणकरि जीव अजीवका अर स्वच्छन्दवृत्ति पोषनेकरि आस्रव संवरादिकका अर सकषायीवत् वाअवेतनवत् मोक्षकहनैकरि मोक्षका अयथार्थ श्रद्धानकौं पौषे हैं । जातें अन्य| मतनिका अन्यथापना प्रगट किया हैं । इनका अन्यथापना भासे, तो तत्वश्रद्धानविषै रुचिवंत होय उनकी युक्तिकरि भ्रम न उपजै । ऐसें अन्यमतनि का निरूपण किया। . . . __ अब अन्यमतनिके शास्त्रनिहीकी साक्षीकरि जिनमतकी समीचीनता वा प्राचीनता प्रगट | कीजिए है, ---- ___ बड़ा योगवाशिष्ठ छत्तीस हजार श्लोक प्रमाण, ताका प्रथम वैराग्यप्रकरण तहां अहंकार | निषेधाध्यायविष वशिष्ठ अर रामका संवादविषै ऐसा कया है,
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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