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मो.मा. प्रकाश
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मतवाले ही ऐसे निरूपण करें हैं तो तुम परस्पर झपरि निर्णयकरि एककों वेदका अनुसारी अन्यकों वेदतै पराङ्मुख ठहरावो । सो हमकों तौ यह भासै है वेदहीविषै पूर्वापर विरुद्धता | लिए निरूपण है। तिसते ताका अपनी अपनी इच्छा अनुसार अर्थ ग्रहणकरि जुदे जुदे ।
मतके अधिकारी भए हैं। सो ऐसे वेदकौं प्रमाण कैसे कीजिए। बहुरि अग्नि पूजे स्वर्ग होय. | | सो अग्नि मनुष्यतै उत्तम कैसैं मानिए प्रत्यक्षविरुद्ध है। बहुरि वह स्वर्गदाता कैसे होय । ऐसे ही अन्य वेदवचन प्रमाण विरुद्ध हैं। बहुरि वेदवि ब्रह्म कह्या है, सर्वज्ञ कैसे न मानें हैं। इत्यादि प्रकारकरि जैमिनीयमत कल्पित जानना। - अब बौद्धमतका स्वरूप कहिए है,
बौद्धमतविर्षे च्यारितत्व प्ररूपै हैं । दुःख, आयतन, समुदाय, मार्ग। तहां संसारीकै | बंधरूप सो दुःख है सो पांच प्रकार है-विज्ञान, वेदना, संज्ञा, संस्कार, रूप । तहां रूपादिक।
को जानना सो विज्ञान है, सुख दुःखका अनुभवना सो वेदना है, मनका जानना सो संज्ञा है, पढ्या था ताका जानना सो संस्कार है, रूपका धारना सो रूप है। सो यहां विज्ञानादिकों | दुःख कह्या सो मिथ्या है । दुःख तो काम क्रोधादिक हैं। ज्ञान दुःख नाहीं। यह तो प्रत्यक्ष | देखिए है। कारकै ज्ञान थोरा है अर क्रोध लोभादिक बहुत हैं सो दुखी है। काहूकै ज्ञान बहुत है काम क्रोधादि स्तोक हैं वा नाही हैं सो सुखी है । तातै विज्ञानादिक दुःख नाहीं हैं।
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(ఆంని అంతం