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________________ కలాం మనం मो.मा. प्रकाश రాం రాం 12 900000000000రూపం విందరాం बहुरि आयतन बारह कहे हैं। पांच तौ इन्द्रिय अर तिनिके शब्दादिक पांच विषय, एक मन, एक धर्मायतन । सो ये आयतन किस अर्थि कहै । क्षणिक सबों कहै, इनिका कहा प्रयोजन है। बहुरि जाते रागादिकका कारण निपजै ऐसा आत्मा अर आत्मीय यह है नाम | जाका सो समुदाय है। तहां अहंरूप आत्मा अर मनरूप आत्मीय जानना, सो क्षणिक माने इनिका भी कहने का किछ प्रयोजन नाहीं । बहुरि सर्व संस्कार चणिक हैं, ऐसी वासना | सो मार्ग है । सो प्रत्यक्ष बहुतकालस्थायी केई वस्तु अवलोकिए है। तू कहैगा एक अवस्था न रहै है, तो यह हम भी माने हैं। सूक्ष्मपर्याय क्षणस्थायी हैं। बहुरि तिस वस्तुही का नाश | माने तो यह होता न दीसे है हम कैसे मान । बहुरि बाल वृद्धादि अवस्थाविषै एक आत्माका | | अस्तित्व भासे है। जो एक नाहीं है तो पूर्व उत्तर कार्यका एक कर्ता कैसैं माने हैं । जो तू || | कहैगा संस्कारतें हैं, तो संस्कार कौनकै है । जाकै है सो नित्य है कि क्षणिक है। नित्य है || तौ सर्व क्षणिक कैसे कहै है । क्षणिक है तो जाका आधार ही क्षणिक तिस संस्कार की परंपरा | कैसे कहै है । बहुरि सर्वक्षणिक भया, तब आप भी क्षणिक भया। तू ऐसी वासना को मार्ग | कहै है सो इस मार्गका फलकों आप तो पावै ही नाही काहेकौं इस मार्गविषै प्रवत्र्ते । बहुरि तेरे मतविषै निरर्थक शास्त्र काहेकों किए। उपदेश तौ किछु कर्त्तव्यकरि फलपावै तिसकै अर्थ || दीजिए है। ऐसे यह मार्ग मिथ्या है । बहुरि रागादिक ज्ञानसंतानवासनाका उच्छेद जो निरोध || २०१ రాం రాం రాం 0000000000000000000000 0000000
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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