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________________ D मो.मा. प्रकाश రంగం 2010-000000 9000000000000000దాం రాం రాం రాం | पाइए है, तातै ए कार्य किछु कार्यकारी नाहीं । बहुरि तहां 'भट्ट' अर 'प्रभाकर' करि, करी | हुई दोय पद्धति हैं । तहां भट्ट तौ छह प्रमाण माने है-प्रत्यक्ष,अनुमान, वेद, उपमा, अर्था पत्ति, अभाव । बहुरि प्रभाकर अभावविना पांच ही प्रमाण माने है । सो इनिका सत्यासत्य| पना जैनशास्त्रनितें जानना । बहुरि तहां षट्कर्म सहित ब्रह्मसूत्रके धारक शूद्रअन्नादिकके | त्यागी, ते गृहस्थाश्रम है नाम जिनिका ऐसे भट्ट हैं । बहुरि वेदान्तविषै यज्ञोपवीत रहित विप्र अन्नादिकके ग्राही, भागवत् है नाम जिनिका ऐसे च्यारि प्रकार हैं—कुटिचर, बहूदक, हंस, परमहंस । सो ए किछू त्यागकरि संतुष्ट भए हैं, परंतु ज्ञान श्रद्धान का मिथ्यापना अर रागादिकका सद्भाव इनिकै पाइए है। तातै ए भेष कार्यकारी नाहीं। बहुरि यहाँ जैमिनीयमत है, सो ऐसैं कहै है,___ सर्वज्ञदेव कोई है नाहीं । वेदवचन नित्य हैं, तिनित यथार्थ निर्णय हो है । तातै पहलें | वेदपाठकरि क्रियाप्रति प्रवर्त्तना सो तौ चोदना, सोई है लक्षण जाका ऐसा धर्म ताका साधन | करना । जैसें कहै हैं "स्वःकामोऽग्निं यजेत” स्वर्गाभिलाषी अग्निकों पूजै, इत्यादि निरूपण करै हैं। यहां पूछिए है, शैव, सांख्य, नैयायिकादिक सर्व ही वेदकों मानें हैं तुम भी मानो हो । तुम्हारे अर उन सबनिकै तत्त्वादिनिरूपणविषै परस्पर विरुद्धता पाईए है सो कहा है। जो | वेदहीविषै कहीं किछु कहीं, किछु निरूपण किया है, तो वाकी प्रमाणता कैसी रही । अर जो 400000000000000000000 Wం రాంచందించిందని వినియం నిను
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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