SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 660
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मो.मा. प्रकाश संख्यादिक हैं सो वस्तुविषै तो किछु है नाहीं, अन्य पदार्थ अपेक्षा अन्य पदार्थके हीनाधिक जाननेकौं अपने ज्ञानविषै संख्यादिककी कल्पनाकरि विचार कीजिए है। बहुरि बुद्धिआदि हैं, | सो आत्मा का परिणमन है । तहां बुद्धि नाम ज्ञानका है तो आत्माका गुण है अर मनका | नाम है तौ द्रव्यनिविषे कह्या ही था, यहां गुण काहेकौं कह्या। बहुरि सुखादिक हैं, सो आत्मा| विषे कदाचित् पाईए है तातें आत्माके लक्षणभूत तो ये गुण हैं नाहीं, अव्याप्तपनेते लक्षणा| भास हैं । बहुरि स्नेहादि पुदगल परमाणुविषै पाईए है, सो स्निग्धगुरुत्व इत्यादि तौ स्पर्शन इन्द्रियकरि जानिए, तातै स्पर्शगुणविषे गर्भित भय जुदे काहेकौं कहे। बहुरि द्रव्यत्वगुण जलविषै कह्या, सो ऐसें तौ अग्निप्रादिविषै ऊर्ध्वगमनत्व आदि पाईए है। के तौ सर्व कहने। थे, के सामान्यविणे गर्मित कहने थे। ऐसैं ए गुण कहे ते भी कल्पित है। बहुरि कर्म पांच प्रकार कहें हैं-उत्क्षेपण, अवक्षेपण, आकुंचन, प्रसारण, गमन । सो ए तो शरीर की चेष्टा हैं। इनिकों जुदा करनेका अर्थ कहा । बहुरि एती ही चेष्टा तौ होती नहीं, चेष्टा तो धनी ही प्रकारकी हो हैं । बहुरि जुदी ही इनिकों तत्त्वसंज्ञा कही, सो के तौ जुदा पदार्थ होय तो ताकौं जुदा | तत्त्व कहना था, के काम क्रोधादि मेटनेकौं विशेष प्रयोजनभूत होय तो तत्व कहना था, सो दोऊ ही नाहीं । अर ऐसे ही कहि देना तो पाषाणादिककी अनेक अवस्था हो हैं सो कह्या | करौ किछु साध्य नाहीं । बहुरि सामान्य दोय प्रकार है-पर, अपर । सो पर तौ सत्तारूप है
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy