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________________ मो.मा. प्रकाश ००००० मिथ्या ही है । जातै वाका कोई प्रमाण नाहीं । अर पृथ्वी आदि तौ परमाणुपिंड हैं । इनका शरीर अन्यत्र ए अन्यत्र ऐसा संभवे नाहीं । तातैं यह मिथ्या है। बहुरि जहां पदार्थ अटक नाहीं, ऐसी जो पोलि ताकों आकाश कहैं हैं । क्षण पल आदिकों काल कहैं हैं । सो ए दो यूं ही वस्तु हैं । सत्तारूप ए पदार्थ नाहीं । पदार्थनिका क्षेत्रपरिणमनादिकका पूर्वापरविचार करने के इनकी कल्पना कीजिए है । बहुरि दिशा किछू हैं नाहीं । आकाशवि खंड कल्पनाकरि दिशा मानिए है । बहुरि आत्मा दोय प्रकार कहैं हैं, सो पूर्वै निरूपण किया ही हैं । बहुरि मन कोई जुदा पदार्थ नाहीं । भावमन तो ज्ञानरूप है, सो आत्माका स्वरूप है । द्रव्यमन पर - | माणूनिका पिंड है, सो शरीर का अंग है । ऐसें ये द्रव्य कल्पित जानने । बहुरि गुण चोईस कहै हैं— स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण, शब्द, संख्या, विभाग, संयोग, परिमाण, पृथक्त्व, परत्व, अपरत्व, बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, धर्म, अधर्मं, प्रयत्न, संस्कार, द्वेष, स्नेह, गुरुत्व, द्रव्यत्व । सो इनिविषे स्पर्शादिक गुण तो परमाणनिविषै पाईए है । परन्तु पृथ्वीकों गंधवती ही कहनी, जलकों शीतस्पर्शवान् कहना इत्यादि मिथ्या है । जातें कोई पृथ्वीविषै गंधकी मुख्यता न भा है । कोई जल उष्ण देखिए है । इत्यादि प्रत्यक्षादितै विरुद्ध है । बहुरि शब्दकौं आकाशका गुण हैं, सो भी मिथ्या है । शब्द भांति इत्यादितै रुके है, तातै मूर्तीक है। आकाश अमूसर्वव्यापी है । भीतिविषै आकाश रहे, शब्दगुण न प्रवेशकरि सकै, यह कैसे बने | बहुरि 0000000 १६५
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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