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मो.मा.
प्रकाश
कोई अकृत्रिम हैं सो ताका कर्त्ता नाहीं। यह प्रत्यक्षादि प्रमाणके अगोचर है ताते ईश्वरकों । कर्ता मानना मिथ्या है। बहुरि जीवात्माको प्रतिशरीर भिन्न कहै हैं । सो यह सत्य है। परंतु मुक्त भए पीछ भी भिन्न ही मानना योग्य है । विशेष पूर्व कह्या ही है। ऐसे ही अन्य तत्वनिकों मिथ्या प्ररूपे हैं वहुरि प्रमाणादिकका भी स्वरूप अन्यथा कल्पै हैं, सो जैनग्रंथनितें परीक्षा किए भासै हैं । ऐसें नैयायिकमतविषै कहे तत्व कल्पित जानने ।
बहुरि वैशेषिकमतविष छह तत्व कहे हैं। द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, समवाय । तहां द्रव्य नवप्रकार, पृथ्वी, जल, अग्नि, पवन, आकाश, काल, दिशा, आत्मा, मन । तहां पृथ्वी जल अग्निके परमाणु भिन्न भिन्न हैं। ते परमाणू नित्य हैं । तिनिकरि कार्यरूप पृषी । हो है सो अनित्य है । सो ऐसा कहना प्रत्यनादित विरुद्ध है। ईधनरूप पृ वी आदिके पर
माा अग्निरूप होते देखिए है । अग्निके परमागा राखरूप पृथ्वी होती देखिए है । जलके परमाणु मुक्ताफल ( मोती ) रूप पृथ्वी होते देखिए है । बहुरि जो | तू कहेगा, वै परमाणु जाते रहे हैं और ही परमाणु तिनिरूप हो हैं सो प्रत्यक्षकों असत्य ठहरावै है। कोई ऐसी प्रबलयुक्ति कहै तो ऐसे ही माने, परन्तु केवल कहे ही तो ऐसें ठहरै नाहीं। जाते सब परमाणनिकी एक पुदगलरूप जाति है, सो पृथ्वी आदि। अनेक अवस्थारूप परिणम है । बहुरि इन पृथ्वी आदिकका कहीं जुदा शरीर ठहरा है, सो