________________
मो.मा.
प्रकाश
350010813500202900100
परद्रव्यरूप है । बहुरि नित्यद्रव्यविषै प्रवृत्ति जिनिकी होय ते विशेष हैं । बहुरि अयुत| सिद्धसंम्बन्ध का नाम समवाय है । सो सामान्यादिक तो बहुतनिकों एकप्रकारकरि वा एक वस्तुविष भेदकल्पनाकरि वा भेदकल्पना अपेक्षा संबंध माननेकरि अपने विचारहीविषै हो है कोई जुदे पदार्थ तौ नाहीं । बहुरि इनिके जाने कामक्रोधादि मेटनेरूप बिशेष प्रयोजन की भी सिद्धि नाहीं, तातैं इनिकों तत्र काहे कहे । अर ऐसें ही तत्त्व कहने थे, तौ प्रमेयत्वादि वस्तु अनन्तधर्म वा संबंध धारादिक कारकनि के अनेक प्रकार वस्तुविषे संभव हैं । कै तौ सर्व कहने थे, कै प्रयोजन जानि कहने थे । तातै ए सामान्यादिक तत्त्व भी वृधा ही कहे । ऐसें वैशेषिकनिकरि कहे कल्पित तत्त्व जानने । बहुरि वैशेषिक दोय ही प्रमाण मान है— प्रत्यक्ष, अनुमान । सो इनिका सत्य असत्यका निर्णय जैनन्यायग्रंथनितें जानना ।
बहुरि नैयायिक तो कहै हैं- विषय, इन्द्रिय, बुद्धि, शरीर, सुख, दुःख, इनिका प्रभाव आत्माकी स्थिति सो मुक्ति है । अर वैशेषिक कहैं हैं— चौईस गुणनिविषै बुद्धि आदि नवगुणनिका प्रभाव सो मुक्ति है । सो यहां बुद्धिका अभाव कला सो बुद्धि नाम ज्ञानका है तौ ज्ञान का अधिकरणपना आत्मा का लक्षण कह्या था, अब ज्ञानका अभाव भए लक्षणका अभाव होते लक्ष्यका भी अभाव होय, तब आत्माकी स्थिति कैसें रही अर जो बुद्धि नाम मनका है, तौ भावमन तो ज्ञानरूप है ही, अर द्रव्यमन शरीररूप है सो मुक्त भए द्रव्यमनका संबन्ध
१६७