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मो.मा. प्रकारा
पदार्थ समान नाहीं हैं। कोई चेतन हैं कोई अचेतन हैं कोई कैसा है कोई कैसा हैं । तिनिकों समान कैसै मानिए । तातें परद्रव्यनिकौं इष्ट अनिष्ट न मानना सो रागद्वेषका त्याग है। पदार्थनिका विशेष जानने में तो किछु दोष है नाहीं । ऐसे ही अन्य मोक्षमार्ग रूप भावनिकी अन्यथा कल्पना करै हैं । बहुरि ऐसी कल्पनाकरि कुशील सेवै हैं अभक्ष्य भखै हैं वर्णादि भेद नाहीं करै हैं हीन क्रिया आचरै हैं इत्यादि विपरीतरूप प्रवत्र्ते हैं । जब कोऊ पछै तब कहै हैं; | यह तो शरीरका धर्म है अथवा जैसी प्रालब्धि है तैसें होय है अथवा जैसे ईश्वरकी इच्छा हो है तैसें हो- || है। हमको तो विकल्प न करना । सो देखो आप जानि जानि प्रबर्ते ताकों तौ शरीरका धर्म बतवै।
आप उद्यमी होय कार्य करै ताकौं प्रालब्धि कहै। आप इच्छाकरि सेवै ताकौं ईश्वरकी इच्छा बतावै । | विकल्प करै अर कहै हमकों तो विकल्प न करना । सो धर्मका आश्रय लेय विषयकषाय सेवने | तातें ऐसी झूठीयुक्ति बनावै हैं । जो अपने परिणाम किछू भी न मिलावै तो हम याका कर्त्तव्य || न माने । जैसें आप ध्यान धरै तिष्ठै अर कोऊ अपने ऊपरि वस्त्र गेरि आवै तहां पाप किछु । सुखी न भया, तहां तौ ताका कर्त्तव्य नाहीं सो सांच, भर आप वस्त्रकों अंगीकारकरि पहरै
अपनी शीतादिक वेदना मिटाय सुखी होय तहां जो अपना कर्त्तव्य न मानै सो कैसे बने । बहुरि कुशील सेवना अभक्ष्य भक्षणा इत्यादि कार्य तौ परिणाम मिले विना होते ही नाहीं । तहां अपना कर्त्तव्य कैसैं न मानिए । तातें जो काम क्रोधादिका अभाव ही भया होय तौ तहां
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