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________________ तारणतरण ॥ ५० ॥ भावार्थ - जो कोई आत्माको नहीं पहचानते हैं वे शास्त्रोंको पढ़ते हुए भी जड़ हैं। इसी कारणसे वे शास्त्रज्ञानी ग्यारह अंग नों पूर्वके पाठी तक भी निर्वाणको नहीं पासक्ते हैं । श्लोक - परमानंद संदृष्टाः, मुक्तिस्थाने य तिष्ठते । सो अहं देहमध्येषु सर्वज्ञं शाश्वतं ध्रुवं ॥ ४४ ॥ अन्वयार्थ — (परमानन्द संदृष्टाः ) परम आनन्दको अनुभव करनेवाले सिद्ध भगवान (मुक्तिस्थाने य ) मोक्षक्षेत्र में (तिष्टते) बिराजमान है (सो) उसीके समान (अहं) मैं (सर्वज्ञ) सर्वका जाननेवाला (शाश्वतं अविनाशी (धुत्रं ) अपने स्वभावको स्थिर रखनेवाला ( देहमध्येषु ) अपनी देहके मध्य में हूँ । विशेषार्थ – सिद्ध भगवान निरंतर परमानन्दका अनुभव करते रहते हैं और सिडालपमें बिरा-जमान हैं उसी तरह मेरा यह आत्मा यद्यपि कर्मों के बन्धन के कारण पर्याय संसारी रख रहा है और पराधीन है तथापि जब मैं इस अपने आत्माको भी शुद्ध द्रव्यार्थिक नयकी दृष्टिसे देखता हूं तो इसमें व सिद्धमें कोई अन्तर नहीं पाता हूं । सिद्ध भी सर्वके ज्ञाता दृष्टा हैं, मैं भी सर्वका ज्ञाता दृष्टा हूं । सिद्ध भी अविनाशी है मैं भी अविनाशी हूं। सिद्ध भी ध्रुव है मैं भी ध्रुव हूं । सम्पदृष्टी ज्ञानी अपने आत्मामें सर्व ही आत्मीक गुणों का विलास देखकर परम संतोष पारंदा है और पुन, पुनः देहके भीतर ही देखकर अपने आत्मा देवका आराधन करता है । श्लोक - दर्शनज्ञान संयुक्तं, चरणं वीर्य अनन्त यं । अमृत ज्ञानसंशुद्धं, देहे देवलि तिष्टते ॥ ४५ ॥ अन्वयार्थ - ( दर्शनज्ञान संयुक्त ) अनन्तदर्शन अनन्तज्ञान सहित (चरणं वीर्य अनन्त यं ) अनंन्त वीर्य तथा वीतराग चारित्र सहित ( अमूर्त ) अमूर्तीक (ज्ञान) ज्ञानाकार (संशुद्धं परमं शुद्ध देव ( देहे देवलि ) देहरूपी मंदिर में (तिष्टते) विराजमान हैं । विशेषार्थ - इस शरीररूपी मंदिर के भीतर जो आत्मा है वही निश्चय से परमात्मा देव है । उसमें अनंतदर्शन, ज्ञान, चारित्र, वीर्य, सुख आदि सर्व गुण को सिद्धों में प्रगट है मो सब विराजमान हैं । यह परमात्मा देव यद्यपि कर्मोंकी वर्गणाओंसे हरएक प्रदेशमें छाए हुए होने के कारण मूर्तीकसा होरहा श्राक्काचार ॥ ५० ॥
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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