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मो.मा. प्रकाश
इहां प्रश्न - जो तुम तौ न्यारे न्यारे जीव अनादिनिधन कहो हौ । मुक्त भए पीछे तो निराकार हो हैं तहां न्यारे न्यारे कैसें संभवें । ताका समाधान — जो मुक्त भए पीछे सर्वज्ञकौं | दी है कि नाहीं दी है । जो दीसे है तौ किछू आकार दीसता ही होगा । बिना आकार देखें कहा देख्या । अर न दीसै है तौ कै तौ वस्तु ही नाहीं, कै सर्वज्ञ नाहीं । तातै इंद्रियगम्य आकार नाहीं तिस अपेक्षा निराकार हैं, अर सर्वज्ञ ज्ञानगम्य है तातैं आकारवान् हैं । जब आकारवान् ठहरथा तब जुदा जुदा होय तौ कहा दोष लागे । बहुरि जो तू जाति अपेक्षा एक कहै तो हम भी मानें हैं। जैसें गेहूं भिन्नभिन्न हैं तिनकी जाति एक है ऐसें एक मानें तो किछू दोष है नाहीं । या प्रकार यथार्थ श्रद्धानकरि लोकविषै सर्व पदार्थ अकृत्रिम जुदे जुदे अनादिनिधन मानने, बहुरि जो वृथा ही भ्रमकरि सांच मूंठका निर्णय न करै तौ तू जाने, तेरे श्रद्धानका फल तू पावैगा ।
बहुरि वै ही ब्रह्मा पुत्रपौत्रादिकरि कुलप्रवृत्ति कहैं हैं । बहुरि कुलनिविषै राक्षस मनुष्य देव तिर्यंच निकै परस्पर प्रसूतिभेद बतावै हैं । तहां देवतैं मनुष्य वा मनुष्यतै देव वा तिर्यंच मनुष्य इत्यादि कोई माता कोई पिता पुत्रपुत्रीका उपजना बतावें सो कैसें संभवे । बहुरि मनहीकरि वा पवनादिकरि वा वीर्य सूंघने आदिकर प्रसूति होनी बतावै हैं, सो प्रत्यक्षविरुद्ध भास है । ऐसें होतें पुत्रपौत्रादिकका नियम कैसे रह्या । बहुरि बड़ेबड़ेनिकों अन्य अन्य
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