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________________ मो.मा. प्रकाश *600/10000300 tee आप भी तो सृष्टिविषे ही था, ऐसे महेशको सृष्टिका संहारकर्त्ता माने है सो असंभव है । या प्रकारकरि वा अन्य अनेकप्रकारकरि ब्रह्मा विष्णु महेशकों सृष्टिका उपजावनहारा, रक्षा करनेवाला, संहार करनेहारा मानना मिथ्या जानि लोककौं अनादिनिधन मानना । इस लोकविषै जै जीवादि पदार्थ हैं ते न्यारे न्यारे अनादिनिधन हैं । बहुरि तिनिकी अवस्थाकी पलटन हूवा | करे है तिस अपेक्षा उपजते विनशने कहिए है । बहुरि स्वर्ग नरक द्वीपादिक हैं ते अनादितै ऐसें ही हैं अर सदाकाल ऐसें ही रहेंगे । कदाचित् तू कहैगा बिना बनाए ऐसे अकारादिक कैसे संभव हो तो बनाए ही होंय । सो ऐसा नाहीं है जातै अनादितैं ही जे पाइए तहां तर्क कहा । जैसें तू परब्रह्मका स्वरूप अनादिनिधन माने है तैसें ए भी हैं । तू कहैगा जीवादिक वा स्वर्गादिक कैसैं भए । हम कहेंगे परब्रह्म कैसें भया । तू कहैगा इनकी रचना ऐसी कौंन करी । हम कहेंगे परब्रह्मकों ऐसा कौन बनाया । तू कहैगा परमब्रह्म स्वयंसिद्ध है । हम कहेंगे जीवादिक वा खर्गादिक स्वयंसिद्ध है । तू कहैगा इनकी अर परब्रह्मकी समानता कैसें संभवे । तौ संभवनेविषै दूषण बताय । लोककौं नवा उपजावना ताका तौ हम अनेक दोष दिखाए। लोककौं अनादिनिधन माननेते कहा जो तू परमब्रह्म माने है सो जुदा ही कोई है नाहीं । ए संसारविषै ज्ञानकरि मोक्षमार्ग साधनतै सर्वज्ञ वीतराग हो हैं । I नाश करना तिसविषै दोष है सो तू बताय । जीव हैं ते ही यथार्थ १६६
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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