SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 629
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मो.मा. प्रकाश माया ब्रह्मते जुदी रहै है कि पीछे एक होय जाय है। जो जुदी रहै तो ब्रह्मवत् माया भी। नित्य भई । तब अद्वैतब्रह्म न रह्या । अर माया ब्रह्म में एक होय जाय है तौ जे जीव मायामें || मिले थे ते भी मायाकी साथि ब्रह्ममें मिलि गए। जब महा प्रलय होते सर्वका परमब्रह्ममें मिलना ठहरथा ही तो मोक्षका उपाय काहेकौं करिए । बहुरि जे जीव मायामें मिले ते बहुरि । लोकरचना भए वै ही जीव लोकविणे आवेंगे कि वै तो ब्रह्ममें मिलगए थे नए उपजेंगे। जो 1 वे ही आवेंगे तो आनिए है जुदे जुदे रहे हैं मिले काहेकौं कहे । अर नए उपजेंगे तो जीवका || अस्तित्व थोरा कालपर्यंत ही रहै है काहेको मुक्त होमेका उपाय कीजिए है । बहुरि वै कहै हैं कि पृथिवी आदिक हैं ते मायाविषै मिलें हैं सो माया अमूर्तीक सचेतन है कि मूर्तीक अचेतन । है। जो अमूर्तीक सचेतन है तो यामें मूर्तीक अचेतन कैसे मिलें। अर मूर्तीक अचेतन है तो यह ब्रह्ममें मिले है कि नाहीं । जो मिले है तो याके मिलनेते ब्रह्म भी मूर्तीक अचेतनकरि मिश्रित भया । अर न मिले है तो अद्वैतता न रही। अर तू कहेगा ए सर्व अमूर्तीक चेतन | होइ जाय हैं तो आत्मा अर शरीरादिककी एकता भई सो यह संसारी एकता माने ही है || | याकौं अज्ञानी काहेकौं कहिए । बहुरि पूछे हैं, लोकका प्रलय होते महेशका प्रलय हो है कि नाहीं । जो हो है तौ युगपत् हो है कि आगे पीछे हो है। जो युगपत् हो है तो पाप नष्ट | | होता लोककों नष्ट कैसे करै । अर आगें पीछे हो है तौ महेश लोककौं नष्टकरि आप कहां रह्या 39100MECTOo201005000128700156002000EoozoalaGoozooozeleo2cHEGifooEENADHECfcolFCloroscont १६५
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy