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मो.मा. प्रकाश
|| तब दूरि करै है । जो थाकों यह लोक इष्ट अनिष्ट लागें है, तो याके लोकसौं रागद्वेष तौ भया।।
साक्षीभूत परब्रह्मका स्वरूप काहेकों कहो । साक्षीभूत तौ वाका नाम है जो स्वयमेव जैसें होय || | तैसे देख्या जान्या करै । जो इष्ट अनिष्टमानि उपजावै नष्ट करै ताकों साक्षीभूत कैसें कहिए, | जाते साक्षीभूत रहना अर कर्ता हर्ता होना ए दोऊ परस्पर विरोधी हैं। एककें दोऊ संभवै । | नाहीं । बहुरि परमब्रह्मकै पहिले तो इच्छा यह भई थी कि में एक हों सो बहुत होस्यों तब है
बहुत भया था। अब ऐसी इच्छा भई होगी जो “मैं बहुत ही सो एक होस्यों' सो जैसे कोऊ | | भोलपते कारज करि पीछे तिस कार्यकों दूरि किया चाहै तैसें परमब्रह्म भी बहुत होय एक | होनेकी इच्छा करी सो जानिये है कि बहुत होनेका कार्य किया सो भोलपहीत किया था | | आगामी ज्ञानकरि किया होता तो काहेकौं ताके दूरि करनेकी इच्छा होती।
बहुरि जो परमब्रह्मकी इच्छा बिना ही महेश संहार करै है तो यह परमब्रह्मका वा | ब्रह्माका विरोधी भया। बहुरि पूछे हैं कि महेश लोककों कैसे संहार करै है। जो अपने अंग- | | निकरि संहार करै है तो सर्वका युगपत् संहार कैसे करे है। बहुरि याकी इच्छा होते स्वयमेव | संहार हो है तो इच्छा तो परमब्रह्म कीन्ही थी यानें संहार कहा किया।
बहुरि हम पूछे हैं कि संहार भए सर्व लोकविर्षे जीव अजीव थे ते कहां गए । तब वे कहै है-जीवनिविषै भक्त तो ब्रह्मविषै मिले, अन्य मायाविषै मिले । अब याकू पूछिए है कि