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________________ मो.मा. प्रकाश मातापिता भए कहैं हैं । सो महंतपुरुष कुशीली मातापितातें कैसें उपजें । यह तो लोकविषै गालि है । ऐसा कहिँ उनकी महंतता काहेकौं कहिए है । बहुरि गणेशादिककी मैल आदि कर उत्पत्ति बतावें हैं । वा काहूका अंग काहूकै जुरै बतावे हैं । इत्यादि अनेक प्रत्यक्ष विरुद्ध क हैं । बहुरि चौबीस अवतार भए कहैं हैं, तहां केई अवतारनिकों पूर्णावतार कहे हैं। केईनिकों अंशावतार कहे हैं । सो पूर्णावतार भए तब ब्रह्म अन्यत्र व्यापि रह्या कि न रह्या । जो रह्या तौ इनि अवतारनिकों पूर्णावतार काहेकौं कहौ । जो व्यापि न रह्या तौ एतावन्मात्र ही ब्रह्म रह्या । अंश अवतार भए तहां ब्रह्मका अंश तो सर्वत्र कहौ हौ इनविषै कहा अधिकता भई । बहुरि कार्य तौ तुच्छ तिसके वास्ते आप ब्रह्म अंशावतार धारया कहै सो जामिये है बिना अवतार धारे ब्रह्मकी शक्ति तिस कार्यके करनेकी न थी । जातैं जो कार्य स्तोक उद्यमतैं होइ तहां बहुत उद्यम का करिए । बहुरि अवतारनिविषै मच्छ कच्छादि अवतार भए सो किंचित् करनेके अर्थहीन तिर्यंचपर्यायरूप भए सो कैसे संभवे । बहुरि प्रहलाद के अर्थ नरसिंह - तार भए सो हरिणाकुशकों ऐसा काहेकौं होने दिया । अर कितनेक काल अपने भक्तकौ काहेकौं दुख याया । बहुरि विरूप स्वांग काहेकौं धरथा । बहुरि नाभिराजाकै वृषभावतार भया बतावे हैं सों नाभिकौं पुत्रपनेका सुख उपजावनेकौं अवतार धरया । घोर तपश्चरण किस अर्थ किया । उनको तौ कुछ साध्य था ही नहीं, अर कहैगा जगतके दिखावनेकौं किया तो कोई अवतार तौ १६८
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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