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मो.मा. प्रकाश
आप करै तौ किछू राजाको महिमा होती नाहीं निन्दा ही होय । तैसें जिस कार्यकौं राजा वा व्यन्तरदेवादिक करि सकें तिस कार्यको परमेश्वर आप अवतार धारि करे ऐसा मानिए तौ किछ परमेश्व की महिमा होती नाहीं निन्दा ही है। बहुरि महिमा तो कोई और होय ताको || दिखाइए है तू तो अबैत ब्रह्म माने है कौनकौं महिमा दिखावै है। अर महिमा दिखानेका | फल तौ स्तुति कराधना है तो कौनपै स्तुति कराया चाहै है। बहुरि तू तो कहै है सर्व जीव परमेश्वरकी इच्छा अनुसार प्रवते हैं अर आपकै स्तुति करावनेकी इच्छा है. तो सबकों अपनी ।। स्तुतिरूप प्रवर्तावै तो काहेकों अन्य कार्य करना परे । तातै महिनाके अर्थि भी कार्य करना | न बने।
बहुरि वे कहै है-परमेश्वर इनि कार्यनिकों करता सन्ता भी अकर्ता है याका निर्धार होता नाहीं। याकों कहिए है-तू कहेगा इह मेरी माता भी है अर बांझ भी है तो तेरा कह्या कैसें मानेगे । जो कार्य करै ताकों अकर्ता कैसे मानिए । अर तू कहै निर्धार होता नाही। सो निर्धार विना मान लेना ठहरथा तो आकाशके फल गधेके सींग भी मानौ सो ऐसा कहना युक्त नाहीं ऐसें ब्रह्मा विष्णु महेराका होना कहै हैं, सो मिथ्या जानना ।
बहुरि वै कहै हैं—ब्रह्मा तो सृष्टिकों उपजावै है, विष्णु रक्षा करै है, महेश संहार करे। है। सो ऐसा कहना भी मिथ्या है । जाते इनि कार्यनिकों करते कोऊ किछू कीया चाहे कोऊ
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