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________________ मो.मा. प्रकाश OOJE0001501000ROOFAfoo/300020800120foolegroo1761-00000000000017100Nanomy-oomnontaceae | निग्रह करना सो भक्तनिकों दुखदायक जे दुष्ट भए ते परमेश्वरकी इच्छाकरि भए कि विना इच्छाकरि भए । जो इच्छाकरि भए तो जैसे कोऊ अपने सेवककों आप की काहूकों कहकरि मरावै बहुरि तिस मारनेवालेकों आप मारै सो ऐसे स्वामीकौं भला कैसैं कहिए । तैसें ही जो अपने भक्तनिकों आप ही इच्छाकरि दुष्टनिकरि पीड़ित करावै। अर पीछे तिनि दुष्टनिकों आप अवतार धारि मारै तौ ऐसे ईश्वरकों भला कैसैं मानिए । बहुरि जो तू कहैगा कि विना इच्छा | दुष्ट भए तो कै तौ परमेश्वरकै ऐसा आगामी ज्ञान न होगा जो दुष्ट मेरे भक्तनिकों दुख देवेंगे | के पहले ऐसे शक्ति न होगी जो इनिकों ऐसे न होने देता। बहुरि वाकों पूछिए है जो ऐसे | | कार्यके अर्थि अवतार धारथा, सौ कहा विना अवतार धारे शक्ति थी कि नाहीं। जो थी तो अवतार काहेकों धारे अर न थी तो पीछे सामर्थ्य होनेका कारण कहा भया । तब वह कहै है ऐसे किए विना परमेश्वरकी महिमा कैसे प्रगट होय । वाँकौं पूछिये है कि अपनी महिमाके अर्थि अपनेअनुचरनिका पालन करै प्रतिपक्षीनिका निग्रह करै सो ही रागद्वेष है । सो रागद्वेष तो संसारी जीवका लक्षण है । जो परमेश्वरकै भी रोगद्वेष पाइए है तो अन्य जीवनिकौं रागद्वेष छोरि समता भाव करनेका उपदेश काहेकों दीजिए । बहुरि रागद्वेषकै अनुसार कार्य करना विचारथा सो कार्य थोरे वा बहुत काल लागे विना होय नाहीं तावत् काल आकुलता भी परभेश्वरकै होती होसी। बहुरि जैसें जिस कार्यकौं छोटा आदमी ही कर सकै तिस कार्यकों राजा o
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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