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________________ मो.मा. प्रकाश . बहुरि वह कहै कि इनको कामक्रोधादि व्याप्त नहीं होता यह भी परमेश्वरको लीला है । ताकों कहिए है-ऐसे कार्य करै हैं ते इच्छाकरि करें हैं कि विना इच्छा करें हैं । जो इच्छा| करि करै हैं तो स्त्रीसेवनकी इच्छाहीका नाम काम है युद्ध करनेकी इच्छाहीका नाम क्रोध है । इत्यादि ऐसे ही जानना । बहुरि जो विना इच्छा हो है तो आप जाकौं न चाहै ऐसा कार्य तौ। परवश भए ही होय सो परव रापना कैसे संभवै । बहुरि तू लीला बतावै है सो परमेश्वर अवतार धरि इन कार्यनिविषे लीला करै है तौ अन्य जीवनिकों इनि कार्यनितें छुड़ाय मुक्त करनेका उपदेश काहेकों दीजिए है । क्षमा संतोष शील संयमादिकका उपदेश सर्व झूठा भया। - बहुरि वै कहें हैं कि परमेश्वरकों तौ किछु प्रयोजन नाहीं। लोकरीतिकी प्रवृत्तिके | अर्थि वा भक्तनिकी रक्षा दुष्टनिका निग्रह तिनिके अर्थि अवतार धरै है। याकों पूछिए हैप्रयोजन विना चिंवटी हू कार्य न करै परमेश्वर काहेकौं करै। बहुरि प्रयोजन भी कहा लोक- | रीतिकी प्रवृत्तिके अर्थि करै है। सो जैसे कोई पुरुष आप कुचेष्टाकरि अपने पुत्रनिकों सिखावै । बहुरि वै तिस चेष्टारूप प्रवत्त तब उनको मारै तो ऐसे पिताकों भला कैसे कहिए । तैसें ब्रह्मादिक आप कामझौधरूप चेष्टाकरि अपने निपजाए लोकनिकै प्रवृत्ति करावें। बहुरि वे लोक तैसें | प्रवर्त तब उनकों नरकादिकविषे डारें । नरकादिक इनिही भावनिका फल शास्त्रविष लिख्या है | | सो ऐसे प्रभुकों भला कैसैं मानिए । बहुरि नै यह प्रयोजन कह्या कि भक्तनिकी रक्षा दुष्टनिका १५५
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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