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________________ क मो.मा. प्रकाश किछु किया चाहै तब परस्पर विरोध होय । अर जो तू कहेगा ए तो एक परमेश्वरका ही स्वरूप है विरोध काहेकों होय । तो आप ही उपजावै आप ही क्षिपावै ऐसे कार्य में कौन फल है । जो सृष्टि आपकों अनिष्ट है तो काहेकौं उपजाई । अर इष्ट है तो काहेको खपाई । जो पहले इष्ट लागी तष उपजाई पीछे अनिष्ट लागी तब खपाई ऐसें है तो परमेश्वरका खभाव । अन्यथा भया कि सृष्टिका स्वरूप अन्यथा भया । जो प्रथम पक्ष ग्रहैगा तो परमेश्वरका एक खभाव न ठहरथा । सो एक स्वभाव न रहनेका कारण कौन है सो बताय, विनाकरण स्वभाव की पलटनि काहेको होय । अर द्वितीय पक्ष ग्रहैगा तो सृष्टि तो परमेश्वरके आधीन थी वाकों ऐसी काहेकौं होने दीनी जो आपकौं अनिष्ट लागे। __ बहुरि हम पूछे हैं-बह्मा सृष्टि उपजावै है सो कैसे उपजावे है। एक तो प्रकार यह है जैसे मन्दिर चुननेवाला चूनापत्थर आदि सामग्री एकठी करि आकारादि बनावै है । तैसें ही ब्रह्मा सामग्री एकठीकरि सृष्टि रचना करें है तौ ए सामग्री जहाते ल्याय एकटी करी सो | ठिकाना बताय । अर एक ब्रह्मा ही एती रचना बनाई सो पहिले पीछे बनाई होगी के अपने शरीरकै हस्तादि बहुत किए होंगे सो कैसे है सो बताय। जो बतावेगा तिसही में विचार किए। विरुद्ध भासँगा। बहुरि एकप्रकार यह है जैसे राजा आज्ञा करै ताके अनुसार कार्य होय तैसें ब्रह्माकी
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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