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मो.मा. प्रकाश
मिलें याका अस्तित्व रहै है कि नाहीं रहै है। जो अस्तित्व रहै है तो यह रह्या याकी चेतना वाकै रही ब्रह्मविषे कहा मिल्या ? अर जो अस्तित्व न रहै है तौ याका नाश भया ब्रह्मविर्षे | कौन मिल्या ? बहुरि जो तू कहेगा ब्रह्मकी अर जीवकी चेतना भिन्न भिन्न है तो ब्रह्म अर सर्वजीव आप ही भिन्न भिन्न ठहरे। ऐसें जीवनिकै चेतना है सो ब्रह्मकी है ऐसा मानना भ्रम है।
शरीरादि मायाके कहो सो माया ही हाड मांसादिरूप हो है कि मायाके निमित्त और कोई तिनरूप हो है। जो माया ही होय है तो मायाकै वर्ण गन्धादिक पूर्व ही थे कि नवीन भए। जो पूर्वं थे तो पूर्वै तौ माया ब्रह्मकी थी अर ब्रह्म अमूर्तिक है तहां वर्णादि कैसे संभवें। बहुरि जो नवीन भए तौ अमूर्तीकका मूर्तिक भया तब अमूर्तीक स्वभाव शाश्वता न ठहरया। बहुरि जो कहैगा मायाके निमित्तते और कोई हो है तौ अर पदार्थ तौ तू ठहरावता ही नाहीं भया कौन । जो तू कहैगा नवीन पदार्थ निपजे । तौ ते मायाते भिन्न निपजे कि अभिन्न निपजे । मायात भिन्न निपजे तो मायामयी शरीरादिक काहेकों कहौ। ते तो तिन| पादर्थमय भये । अर अभिन्न निपजे तौ माया ही तद्रूप भई नवीन पदार्थ निपजे काहेकौं कही। ऐसे शरीरादिक मायास्वरूप हैं ऐसा कहना भ्रम है।
बहुरि वह कहै है माया तीन गुण निपजे-राजस तामस साविक । सो यह भी । १५२