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मो.मा. जलावैगे। कबहू कहै मोकौं जलावेंगे। कबहू कहै जस रह्या तौ हम जीवते ही हैं । कबहू कहे प्रकाश || पत्रादिक रहेंगे तो मैं ही जीवौंगा। ऐसें बाउलाकीसी नाई बकै है किछ साबधानी नाहीं।
|| बहरि आपकौंप रलोकविणे प्रत्यक्ष जाता जानै ताका तौ इष्ट अनिष्टका किछ उपाय नाहीं। अर
इहां पुत्र पोता आदि मेरी संततिविष घनेकाल ताई इष्ट रह्या करै अनिष्ट न होय । ऐसें अनेक | उपाय करै है। काइका परलोक भए पीछे इस लोककी सामग्रीकरि उपकार भया देख्या नाहीं | परन्तु याकै परलोक होनेका निश्चय भए भी इस लोककी सामग्रीहीका यतन रहे है । बहुरि विषयकषायकी प्रवृत्तिकरि वा हिंसादि कार्यकरि आप दुखी होय, खेदखिन्न होय, औरनिका वैरी होय, इस लोकविष निंद्य होय, परलोकविषै बुरा होय सो प्रत्यक्ष आप जाने तथापि तिनिहीविषै प्रवत् । इत्यादि कनेक प्रकार प्रत्यक्ष भासै ताकौं भी अन्यथा श्रद है जानै आचरै सो यह मोहका माहात्म्य है। ऐसे यह मिथ्यादर्शनज्ञानचारित्ररूप अनादित जीव परिणमै है। इस ही परिणमनकरि संसारविषे अनेक प्रकार दुख उपजावनहारे कर्मनिका संबंध पाइए है । एई भाव दुःखनिके बीज हैं अन्य कोई नाहीं । ताते हे भव्य जो दुखते मुक्त भया चाहै तो इनि। मिथ्यादर्शनादिक विभावनिका अभाव करना यह ही कार्य है इस कार्यके किए तेरा परम कल्याण होगा। इति श्रीमोक्षमार्गप्रकाशक नाम शास्त्रविष मिथ्यादर्शनज्ञानचारत्रका निरूपणरूप
चौथा अधिकार सम्पूर्ण भया ॥४॥
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