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________________ मो.मा. प्रकाश है, सो बलवान् है । अर बाह्य कारण पदार्थ है सो बलवान् नाहीं है । महामुनिकै मोह मन्द होते | बाह्य पदार्थनिका निमित्त होते भी रागद्वेष उपजते नाहीं । पापी जीवनिकै मोह तीव्र होते बाह्यकारण न होतैं भी तिनिका संकल्पहीकरि रागद्वेष हो है । तातैं मोहका उदय होतैं रागदिक हो हैं । तहां जिस बाह्यपदार्थका आश्रयकरि रागभाव होना होय तिसविषै विना ही प्रयोजन वा किछू प्रयोजनलिए इष्टबुद्धि हो है । बहुरि जिस पदार्थका आश्रयकरि द्वेषभाव होना | होय तिसविषै विना ही प्रयोजन वा किछू प्रयोजनलिए अनिष्टबुद्धि हो है । तातै मोहका उदय पदार्थनिकों इष्ट अनिष्ट माने विना रह्या जाता नाहीं । ऐसें पदार्थनिकै विषै इष्टानिष्ट| बुद्धि हो रागद्वेषरूप परिणमन होय ताका नाम मिथ्याचारित्र जानना । बहुरि इनि रागद्वेषनिहीके विशेष क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, | पुरुषवेद, नपुन्सकवेदरूप कषायभाव हैं ते सर्व इस मिथ्याचारित्रके भेद जानने । इनिका बर्णन पूर्वे किया ही है । बहुरि इस मिथ्याचारित्रविषै स्वरूपाचरणरूप चारित्रका अभाव है। ता याका नाम अचारित्र भी कहिए । बहुरि इहां परिणाम मिटै नाहीं अथवा विरक्त नाहीं ता याहीका नाम असंयम कहिए है वा अविरत कहिए है । जातैं पांच इंद्रिय र मनके विषयनिविषै कटुरि पंचस्थावर सकी हिंसाविषै स्वच्छन्दपना हो है अर इनके त्यागरूप भाव न होय तो ही असंयम वा अविरत वारह प्रकार का है । सो कषायभाव भए ऐसे कार्य हो १३८
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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