________________
मो.मा. प्रकाश
भूत बाह्य पदार्थ निविषै तौ रोग करै है अर ताके घातनिविषै द्वेष करे है । बहुरि शरीरकी अनिष्ट अवस्थाके कारणभूत बाह्य पदार्थनिविषै तौ द्वेष करै है अर ताके घातकनिविषै राग करे है । बहुरि इनिविषै जिन बाह्य पदार्थनिसों राग करे है तिनिके कारनभूत अन्य पदार्थनिविषै रा करे है तिनिके घातकनिविषै द्वेष करे है । बहुरि जिन वाह्य पदार्थनिसौं राग करै है तिनिके कारनभूत अन्य पदार्थनिविषै द्वेष करे है तिनिके घातकनिविषै राग करे है । बहुरि इनिविषै भी जिनस राग करै है तिनिके कारण वा घातक अन्य पदार्थ निविषै राग वा द्वेष करें है । श्रर जिनस द्वेष है तिनिके कारण वा घातक अन्य पदार्थनिविषै द्वेष वा राग करें है । ऐसें ही राग द्वेषकी परंपरा प्रवर्त्ते है । बहुरि केई बाह्यपदार्थ शरीरकी अवस्थाकों कारण नाहीं तिनिविषै भी रागद्वेष करै है । जैसें गऊ आदिके पुत्रादिकतैं किछू शरीरका इष्ट होय नाहीं तथापि तहां राग करे है । जैसें कूकरा आदिक कै बिलाई आवतैं किछू शरीरका अनिष्ट होय नाहीं तथापि तहां द्वेष करै है । बहुरि केई वर्ण गन्ध शब्दादिकके अवलोकनादिकतैं शरीरका इष्ट होता नाहीं तथापि तिनिविषै राग करें हैं। कई वर्णादिकके अवलोकनादिकतैं शरीरका अनिष्ट होता नाहीं तथापि तिनिविषै द्वेष करै है । ऐसै भिन्न भिन्न बाह्य पदार्थनिविषै रागद्वेष हो है । बहुरि इनविषै भी जिनस राग करै है तिनिके कारण अर घातक अन्यपदार्थनिविषै राग वा द्वेष करें है । अर जिनस्यों द्वेष करै है तिनिके कारण वा घातक अन्यपदार्थ तिनिविषै द्वेष वा राग करें है
Sao con để
१३६