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मो.मा. प्रकाश
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शरीर इष्ट है सो रोगादिसहित होय तब अनिष्ट होइ जाय । पुत्रादिक इष्ट हैं सो कारनपाय | अनिष्ट होते देखिए है । इत्यादि जानने । बहुरि यह जीव जाकों मुख्यपनै अनिष्ट मानै सो भी | इष्ट होता देखिये है। जैसे गाली अनिष्ट लागै है सो सासरैमें इष्ट लागै है । इत्यादि जानने।
ऐसे पदार्थनिविषै इष्ट अनिष्टपनौ है नाहीं । जो पदार्थविषै इष्ट अनिष्टफ्नौ होतो, तौ जो पदार्थ || | इष्ट होता सो सर्वको इष्ट ही होता। जो अनिष्ट होता सो अनिष्ट ही होता। सो है नाहीं। यह जीव आप ही कल्पनाकरि तिनिकों इष्ट अनिष्ट माने है । सो यह कल्पना झूठी है । बहुरि | पदार्थ है सो सुखदायक उपकारी वा दुखदायक अनुपकारी हो है सो आपही नाहीं हो है पुण्यपापका उदयके अनुसारि हो है । जाकै पुण्यका उदय हो है ताकै पदार्थनिका संयोग
सुखदायक उपकारी हो है । जाकै पापका उदय हो है ताकै पदार्थनिका संयोग दुखदायक । अनुपकारी हो है । सो प्रत्यक्ष देखिये है । काहूकै स्त्रीपुत्रादिक सुखदायक हैं काहूकै दुखदायक हे व्यापार कीए काहूकै नफा हो है काहूकै टोटा हो है। काहूकै शत्रु भी किंकर हो है ।। काहूकै पुत्र भी अहितकारी हो है । तातें जानिए है पदार्थ आप ही इष्ट अनिष्ट होते नाहीं। कर्म उदयके अनुसार प्रवर्ते हैं। जैसे काहूकै किंकर अपने स्वामीके अनुसारि किसी पुरुषकों इष्ट अनिष्ट उपजावें तौ किछू किंकरिनिका कर्त्तव्य नाहीं उनके स्वामीका कर्त्तव्य है जो किंकरनिहीकों इष्ट अनिष्ट मानै सोझठ है तैसें कर्मके उदयतें प्राप्त भए पदार्थ कर्मके अनुसार जीव
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