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मो.मा. प्रकाश
ప్రాంతం రాం
करि आप सुखदुख माने इन सबनिकों एक जानि शीतादिककों वा सुखदुखकों अपने ही भए मान है बहुरि शरीरका परमाणूनिका मिलना विछुरनादि होनेकरि वा तिनिकी अवस्था पलटनेकरि वा शरीरस्कन्धका खंडादि होनेकरि स्थूल कृशादिक वा बाल वृद्धादिक वा अंगहीनादिक होय । अर ताकै अनुसार अपने प्रदेशनिका संकोच विस्तार होइ यह सबकौं एक मानि में स्थूल हों में कृश हों में बालक हों में वृद्ध हौं मेरे इनि अंगनिका भंग भया है इत्यादि रूप माने हैं। यह शरीरकी अपेक्षा गतिकुलादिक होइ तिनिकों अपने मानि में मनुष्य हों में तिर्यच हों में क्षत्रिय हों में वैश्य हों इत्यादिरूप मान है। बहुरि शरीर संयोग होने छूटनेकी अपेक्षा जन्म मरण होय तिनिकों अपना जन्म मरण मानि में उपज्या, में मरूंमा ऐसा माने है । बहुरि शरीरहीकी अपेक्षा अन्यवस्तुनिस्यों नाता माने है। जिनकरि शरीर निपज्या तिनिकों आपके माता पिता माने है। जो शरीरकू रमावै ताकौं अपनी रमणी मान है। जो शरीरकरि निपज्या ताकों अपना पुत्र माने है । जो शरीरकों उपगारी ताकौं मित्र माने है। जो शरीरका बुरा करै ताकौं शत्रु मान है इत्यादिरूप मानि हो है। बहुत कहा कहिए जिसतिसप्रकारकरि आप अर शरीरकों एक ही मान है । इन्द्रियादिकका नाम तो इहां कह्या है । याकू तो किछु गम्य नाहीं । अचेत हुवा पर्यायविर्षे अहंबुद्धि धारै है । सो कारन कहा है, सो कहिए है, इस आत्माकै अनादित इन्द्रियज्ञान है ताकरि आप अमूर्तीक है सो तो भासै नाहीं अर शरीर
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నిరంకం పోంగం సరిపోతుంది రంకుతం సంఘం