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मो.मा. प्रकाश
रूप भाव होइ ? ऐसें मोह उपजनैका कारणनिका प्रभाव जानना । बहुरि अन्तरायके उदय शक्ति हीनपनाकरि पूरन न होती थी । अब ताका अभाव भया तातै दुखका अभाव भया ! बहुरि अनन्त शक्ति प्रगट भई तातै दुःखके कारणका भी अभाव भया । इहां कोऊ कहैं, दान लाभ भोग उपभोग करते नाहीं इनकी शक्ति कैसें प्रगट भइ । ताका समाधान, -
ए कार्य रोग उपचार थे। जब रोग ही नाहीं तब उपचार काहेकौं करें। तातैं इनकार्यनिका सद्भाव तौ नाहीं । अर इनिका रोकनहारे कर्मका अभाव भया तातै शक्ति प्रगटी कहिए है । जैसें कोऊ नाहीं गमन किया चाहै ताकौ काढूने रोक्या था तब दुखी था। जब वाकै रोकना दूरि भया अर जिह कार्य के अर्थ गया चाहे था सो कार्य न रह्या तब गमन भी न किया। तब वाकै गमन न करते भी शक्ति प्रगटी कहिए। तैसें ही इहां जानना । बहुरि ज्ञानादिका शक्तिरूप अनन्तीर्य प्रगट उनकै पाइए है। बहुरि अधाति कर्मनिविषै मोह पापप्रकृतिनिका उदय होतैं दुख मानै था । पुण्यप्रकृतिका उदयकौं सुख मान था । परमार्थ आकुलताकरि सर्व दुख ही था । अब मोहके नाशर्तें सर्व श्राकुलता दूरि होनेते सर्व दुःखका नाश भया । बहुरि जिन कारननिकरि दुख मानै था ते तौ कारन सर्व नष्ट भये । अरजिनिकरि किंचित् दुख दूर होने सुख मानै था सो अब मूलही में दुख रह्या नाहीं । तातै तिनि दुख के उपचारनिका किछू प्रयोजन रह्या नाहीं जो तिनिकरि कार्यकी सिद्धि क्रिया चाहे । ताकी
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