________________
मो.मा. प्रकाश
इच्छा बाह्य निमित्ततें बने है सो इनि तीनप्रकार इच्छानिके अनुसारि प्रवर्त्तनेकी इच्छा हो है। सो तीनि प्रकार इच्छानिविषै एक एक प्रकारकी इच्छा अनेक प्रकार है। तहां केई प्रकारकी । इच्छा पूरन करनेका कारन पुण्यउदयतें मिले । तिनिका साधन युगपत् होइ सके नाहीं। ताते एकको छोड़ि अन्यकौं लागै, आगें भी वाकौं छोड़ि अन्यकौं लागे । जैसे काहुकै अनेक सामग्री मिली है । वह काहूकौं देखै है वाकौं छोड़ि राग सुनै है वाकों छोड़ि काहूका बुरा करने लगि जाय बाको छोड़ि भोजन करै है अथवा देखनेविषे ही एककौं देखि अन्यकों देखे है । ऐसे ही अनेक कार्यनिकी प्रवृत्तिविषै इच्छा हो है सो इस इच्छाका नाम पुण्यका उदय है। याकौं जगत सुख माने है सो सुख है नाही, दुख ही है। काहेते-प्रथम तौ सर्वप्रकार इच्छा | पूरन होनेके कारन काहूकै भी न बनें । अर केई प्रकार इच्छा पूरन करनेके कारन बनें तो
युगपत् तिनिका साधन न होइ। सो एकका साधन जावत् न होइ तावत् वाकी आकुलता रहै वाका साधन भए उसही समय अन्यका साधनकी इच्छा हो है तब वाकी आकुलता हो है । एक समय भी निराकुल न रहै, तातें दुखी ही है । अथवा तीनप्रकारके इच्छारोग मिटावनेका किंचित् उपाय करै है ताते किंचित् दुख घाटि हो है सर्व दुखका तौ नाश न होइ तातें दुख ही है । ऐसें संसारी जीवनिकै सर्व प्रकार दुख ही है । बहुरि इहां इतना जानना, तीनप्रकार इच्छानिकरि सर्व जगत पीड़ित है अर चौथी इच्छा है सो पुण्यका उदय आये