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प्रकाश
मो.मा.10 कार्य विशेष हो है । सो भी ऊंचे ऊंचे देवनिकै घााटे(कम) है । बहार हास्य रात कषायके कारन ||
| घने पाइए है । ताते इनिके कार्यनिकी मुख्यता है । बहुरि अरति शोक भय जुगुप्सा इनिके कारन थोरे हैं ताते इनिके कार्यनिकी गौणता है। बहुरि स्त्रीवेद पुरुषवेदका उदय है अर रमनेका भी निमित्त है सो कामसेवन करै हैं। ए भी कषाय ऊपरि ऊपरि मन्द हैं। अहमिंद्र-| | निके वेदनिकी मन्दताकरि काम सेवनका अभाव है। ऐसें देवनिकै कषायभाव हैं सो कषाय-|
हीत दुख है। अर इनिकै कषाय जेता थोरा है तितना दुख भी थोरा है ताते औरनिकी | | अपेक्षा इनिकों सुखी कहिए है। परमार्थते कषायभाव जीवे है ताकरि दुखी ही हैं । वहुरि | वेदनीयविष साताका उदय बहुत है। तहां भवनत्रिककै थोरा है। वैमानिकनिकै ऊपरि ऊपरि विशेष है । इष्ट शरीरकी अवस्था स्त्रीमन्दिरादि सामग्रीका संयोग पाइए है। बहुरि कदाचित् | | किंचित् असाताका भी उदय कोई कारणकरि हो है। तहां निकृष्टदेवनिकै किछु प्रगट भी है। अर उत्कृष्ट देवनिकै विशेष प्रगट नाहीं है। बहुरि आयु बड़ी है। जघन्य दशहजारवर्ष उत्कृष्ट तेतीस सागर है । याते अधिक आयुका धारी मोक्षमार्ग पाए बिना होता नाहीं । सो इतना काल विषयसुखमें मगन रहै हैं । बहुरि नामकर्मकी देवगति आदि सर्व पुण्यप्रकृतिनिहीका उदय है । तातै सुखका कारन है। अर गोत्रविषै उच्चगोत्रहीका उदय है तातै महंतपदको प्राप्त हैं ऐसें इनिकै पुण्यउदयकी विशेषताकरि इष्ट सामग्री मिली है । अर कषायनिकरि
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