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________________ मो.मा. प्रकाश 500-15001085 दोहा । सो निजभाव सदा सुखद, अपन करो प्रकाश ॥ जो बहुविधि भवदुखनिकौ, करि है सत्तानाश ॥ १ ॥ अथ इस संसारअवस्थाविषै नानाप्रकार दुःख हैं तिनिका वर्णन करिए है — जातें जो संसारविषै भी सुख होय तौ संसारतें मुक्त होनेका उपाय काहेकौं करिए। इस संसारविषै अनेक दुःख हैं, तिसहीतें संसारतें मुक्त होनेका उपाय कीजिए है । बहुरि जैसें वैद्य है सो | रोगका निदान अर ताकी अवस्थाका वर्णनकरि रोगीको संसाररोगका निश्चय कराय पीछे तिसका इलाज करनेकी रुचि करावे है तैसें यहां संसारका निदान वा ताकी अवस्थाका वर्णनकरि संसारीक संसार रोगका निश्चय कराय अब तिनिका उपाय करनेकी रुचि कराइए है । जैसें रोगी रोगतें दुखी होय रह्या है परन्तु ताका मूलकारण जानें नाहीं, सांचा उपाय जानें नाहीं अर दुःख भी सह्या जाय नाहीं तब आपकों भासै ही उपाय करै तातें दुःख दूरि होय नाहीं । तब तड़फ तड़फ परवशहुवा तिनि दुःखनिकों सहै है । याक यहां दुःखका मूलकारन बताइए अर दुःखका स्वरूप बताइए अर तिनि उपायनिकूंकूंठे दिखाइए तौ सचे उपाय करनेकी रुचि होय तातें यह वर्णन इहां करिये है । तहां सर्व दुःखनिका मूलकारन मिथ्यादर्शन अज्ञान असंयम है । जो दर्शनमोहके उदयतें भया अतत्त्वश्रद्धान मिथ्यादर्शन ६७
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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