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________________ मो.मा. प्रकाश रित्रौं दोष उपज्या करै तातें यथाख्यातचरित्र न होय सके ते संज्वलन कषाय हैं । सो अनादि | संसारअवस्थाविषै इनि च्यास्यूं ही कषायमिका निरन्तर उदय पाइये है। परम कृष्णलेश्यारूप तीवकषाय होय तहां भी अर शुक्ललेश्यारूप मंदकषाय होय तहां भी निरन्तर च्यात्योंहीका उदय रहै है । जाते तीवमंदकी अपेक्षा अनन्तानुषन्धी भेदआदि भेद नाहीं हैं सम्यक्त्वादि | घातनेकी अपेक्षा ए भेद हैं इनिकी प्रकृतिनिका तीन अनुभाग उदय होते तीन क्रोधादिक हो है मंद अनुभाग उदय होते मन्द उदय हो है । बहुरि मोक्षमार्ग भए इनि च्यारौं विषै तीन दोय एकका उदय हो है पीछे च्यारयोंका अभाव हो है बहुरि क्रोधादि च्यास्थों कषायनिविषै एकैकाल एकहीका उदय हो है । इनि कषायनिकै परस्पर कारणकार्यपनो है । क्रोधकरि मानादिक हो जाय,मानकरि क्रोधादिक हो जाय ताते काहूकाल भिन्नता भासे, काहूकाल न भासै | है ऐसे कषायरूप परिणमन जानना। बहुरि चारित्रमोहहीके उदयतें नोकषाय होय है तहां । | हास्यका उदयकरि कहीं इष्टपनो मानि प्रफुल्लित हो है हर्ष माने है बहुरि रतिका उदयकरि काहकों इष्ट मानि प्रीति करै है तहां आसक्त हो है । बहुरि अरतिका उदयकरि काहूकौं अनिष्ट मानि अप्रीति करे है तहां उद्वेगरूप हो है। बहुरि शोकका उदयकरि कहीं अनिष्टपनौ | मानि दिलगीर हो है विषाद माने है । बहुरि भयका उदयकरि किसीकौं अनिष्ट मानि तिसत डरै है वाका संयोग न चाहै है । बहुरि जुगुप्साका उद्यकरि काहू पदार्थकों अनिष्ट मानि
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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