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मो.मा.
प्रकाश
प्राधीन है । बहुरि मायाका उदय होते कोई पदार्थकों इष्ट मानि नानाप्रकार छलनिकरि ताकी सिद्धि किया चाहै रत्न सुवर्णादिक अचेतन पदार्थनिकी वा स्त्री दासी दासादि सचेतन | | पदापिकी सिद्धि के अर्थि अनेक छल करै ठिगनैके अर्थि अपनी अनेक अवस्था करै वा । | अम्य अचेतन सचेतन पदार्थनिकी अवस्था पलटावे इत्यादिरूप छलकरि अपना अभिप्राय | सिद्ध किया चाहे या प्रकार मायाकरि इष्टसिद्धिके अर्थि छल तो करै अर इष्टसिद्ध होना | भवितव्य प्राधीन है। बहुरि लोभका उदय होते पदार्थनिकों इष्ट मानि तिनकी प्राप्ति चाहै | वस्त्राभरण धनधान्यादि अचेतन पदार्थनिकी तृष्णा होय, बहुरि स्त्री पुत्रादि सचेतन पदार्थनिकी तृष्णा होय। बहुरि आपकै वा अन्य सचेतन अचेतन पदार्थ के कोई परिणमन होना इष्ट । मानि तिनिकों तिस परिणमनरूप परिणमाया चाहै या प्रकार लोभकरि इष्टप्राप्तिकी इच्छा तो होय अर इष्टप्राप्ति होनी भवितव्य आधीन है। ऐसे क्रोधादिकका उदयकरि आत्मा परिणम है, तहां । एक एक कषाय घ्यार-प्यार प्रकार हैं अनंतानुबन्धी १,अप्रत्याख्यानावरण २,प्रत्याख्यानाधरण ३, | संज्वलन ४, तां जिनका उदयतें आत्माकै सम्यक्त्व न होय स्वरूपाचरण चारित्र न होय सकै ते अनंतानुबंधीकषाय हैं। जिनका उदय होतें देशचारित्र न होय तातें किंचित् त्याग भी न होय सके ते अप्रत्याख्यानावरण कषाय हैं। बहुरि जिनिका उदय होते सकलचारित्र न होय तातै सर्वका त्याग न होय सकै ते प्रत्याख्यानावरण कषाय हैं। बहुरि जिनिका उदय होते सकलचा