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मो.मा. प्रकाश
|| विपरीतश्रद्धान हो है । बहुरि चारित्रमोहके उदयतें इस जीवकै कषायभाव हो हैं तब यह | देखता जानतासंता परफ्दार्थनिविणे इष्ट अनिष्टपनौ मानि क्रोधादिक करै है। तहां क्रोधका | उदय होते पदार्थनिविर्षे अनिष्टपनौ वा ताका बुरा होना चाहै, कोऊ मंदिरादि अचेतन पदार्थ | बुरा लागै तब फोरना तोरना इत्यादि रूपकरि वाका बुरा चाहै। बहुरि शत्रुआदि अचेतन सचेतन पदार्थ बुरा लागे तब वाकों बध बंधादिकरि वा मारनेकरि दुःख उपजाय ताका बुरा
चाहै । बहुरि श्राप वा अन्य सचेतन अचेतन पदार्थ कोई प्रकार परिणये, आपकों सो परिणall मन बुरा लागै तब अन्यथा परिणमाबनेकरि तिस परिणमनका बुरा चाहै, याप्रकार क्रोधकरि ।। | बुरा चाहनेकी इच्छा तो होय, बुरा होना भवितव्य आधीन है। बहुरि मानका उदय होते। पदार्थविणे अनिष्टपनौं मानि ताकौं नीचा किया चाहै आप ऊँचा भया चाहे, मल धूलिआदि || अचेतन पदार्थनिविष घृणा वा निरादरादिककरि तिनिकी हीनता आपकी उच्चता चाहे बहुरि | पुरुषादिक सचेतन पदार्थनिकों नमावना,अपने आधीन करना इत्यादि रूपकरि तिनिकी हीनता || आपकी उच्चता चाहै । बहुरि आप लोकविर्षे जैसे ऊँचा दीसै तैसैं श्रृंगरादि करना वा धन || खरचना इत्यादि रूपकरि औरनिकौं हीन दिखाय आप ऊँचा होना चाहै । बहुरि अन्य कोई | आपते ऊँचा कार्य करै ताकों कोई उपायकरि नीचा दिखावै अर आप नीचा कार्य करै ताों ऊँचा दिखावे या प्रकार सानकरि अपनी महन्तताक़ी इच्छा तो होय, महन्तता होनी भवितव्य