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________________ मो.मा. प्रकाश तक प्रदेशनिका पुञ्ज प्रसिद्ध ज्ञानादिगुणनिका धारी अनादिनिधन वस्तु आप है अर मूर्तीक पुद्गलद्रव्यनिका पिंड प्रसिद्ध ज्ञानादिकनिकरि रहित जिनका नवीनसंयोग भया ऐसें शरीरादिक पुल पर हैं इनिका संयोगरूप नानाप्रकार मनुष्य तिर्यंचादि पर्याय हो हैं, तिन पर्यायनिविषै अहंबुद्धिधारे है, स्वपरका भेद नाहीं करि सकै है जो पर्याय पावै तिसही आप मा है । बहुरि तिस पर्यायविषै ज्ञानांदिक हैं ते तो आपके गुण हैं अर रागादिक हैं ते आपके कर्मनिमित्ततै उपाधिक भाव भए हैं अर वर्णादिक हैं ते आपके गुण नाहीं हैं शरीरादिक पुद्गल गुण हैं अर शरीरादिकविषै वर्णादिकनिकी वा परमाणूनिकी नानाप्रकार पलटन हो | है सो पुगलकी अवस्था है सो इन सबनिहीक अपनों स्वरूप जाने है स्वभाव परभावका विवेक नाहीं होय सकै है । बहुरि मनुष्यादिक पर्यायनिविषै कुटुम्ब धनादिकका सम्बन्ध हो है प्रत्यक्ष आपतें भिन्न हैं अर ते अपने आधीन होय नाहीं परणमै हैं तथापि तिनिविषै ममकार करै है ए मेरे हैं वैं काहू प्रकार भी अपने होते नाहीं, यह ही अपनी मानितें अपने माने है । बहुरि मनुष्यादि पर्यायनिविषै कदाचित् देवादिकका तत्त्वनिका अन्यथा स्वरूप जो कल्पित किया ताकी तौ प्रतीति करे है और यथार्थस्वरूप जैसे हैं तैसें प्रतीत न करें है । ऐसें दर्शनमोहके उदयकरि जीवकै तत्त्वश्रद्धानरूप मिथ्यात्वभाव हो है । जहां तीव्र उदय होय है तहां श्रद्धा से घना विपरीत श्रद्वान होय है जब मन्द उदय होय है, तब सत्यश्रद्धानतै थोरा ५७
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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