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मो.मा.
प्रकाश
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| मोक्षमार्गखरूप है । तातें इस अनादिसंसार अवस्थाविषे इनिका सद्भाव ही नाहीं है ऐसे ज्ञानकी प्रवृत्ति पाइये है। बहुरि इन्द्रिय वा मनके स्पर्शादिकविषय तिनिका सम्बन्ध होते। प्रथमफालविषै मतिज्ञानकै पहले जो सत्तामात्र अवलोकनेरूप प्रतिभास हो है ताका नाम | चक्षुदर्शन वा अचक्षुदर्शन है। तहां नेत्र इन्द्रियकरि दर्शन होय ताका नाम तो चक्षुदर्शन, है सो तौ चौइन्द्रिय पंचेंद्रिय जीवनिही के हो है । बहुरि स्पर्शन रसन घ्राण श्रोत्र इन च्यारि। इन्द्रिय अर मनकरि दर्शन होय ताका नाम अचक्षदर्शन है सो यथायोग्य एकेंद्रियादि जीवनिकै हो है। बहुरि अवधि के विषयनिका सम्बन्ध होते अवधिज्ञानके पहलै जो सत्तामात्र अवलोकनेरूप प्रतिभास होय ताका नाम अवधिदर्शन है सो जिनिकै अवधिज्ञान संभवै तिनिही कै । वह हो है । जो यह चनु अचनु अवधिदर्शन है सो मतिज्ञान अवधिज्ञानवत् पराधीन जानना । बहुरि केवलदर्शन मोक्षखरूप है ताका यहां सद्भाव ही नाहीं। ऐसें दर्शनका सद्भाव पाइये है। या प्रकार ज्ञान दर्शनका सद्भाव ज्ञानावरण दर्शनावरणका क्षयोपशमके अनुसार हो है। जब क्षयोपशम थोरा हो है तब ज्ञानदर्शनकी शक्ति भी थोरी हो है । जब बहुत होय तब बहुत हो है । बहुरि क्षयोपशमतें शक्ति तो ऐसी बनी रहै अर परिणमनकरि एक जीव के एक कालविषै एक विषयहीका देखना वा जानना हो है। इस परिणमनहीका नाम उपयोग है । तहां एक जीव एक कालविषै तौ ज्ञनोपयोग हो है बा दर्शनोपयोग हो है बहुरि एक
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