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________________ मो.मा. प्रकाश जान्या होय ताके सम्बन्ध अन्य अर्थको जाकरि जानिये सो श्रुतज्ञाम है सो दोय प्रकार है । अक्षरात्मक १ अनबरात्मक २ । तहां जैसें 'घट' ए दोष अक्षर सुने वा देखे सो तौ मतिज्ञान भया तिनिके सम्बन्ध घटपदार्थका जानना भया सो श्रुतज्ञान भया । ऐसें अन्य भी जानना सो यह तो अक्षरात्मक श्रुतज्ञान है । बहुरि जैसें स्पर्शकरि शीतका जानना भया सो तौ मतिज्ञान है ताके सम्बन्ध यह हितकारी नाहीं यातै भागि जाना इत्यादिरूप ज्ञान भया सो श्रुतज्ञान है । ऐसें अन्य भी नामना । यह अनक्षरात्मक श्रुतज्ञान है । तहां एकेंद्रियादिक संज्ञी जीवनकै तौ अनक्षरात्मक ही श्रुतज्ञान है अवशेष संज्ञी पंचेद्रियकै दोऊ हैं । सो यह भुतज्ञान है, सो अनेक प्रकार पराधीन जो मतिज्ञान ताकै भी आधीन है । वा अन्य अनेक कारखनिकै चाधीन है तातें महापराधीन जानना । बहुरि अपनी मर्यादाकै अनुसार क्षेत्रकाल का प्रमाण लिए रूपी पदार्थनिकों स्पष्टपनें जाकरि जानिये सो अवधिज्ञान है सो यह देव मारकीनिकै तौ सर्व कै पाइये है । अर संज्ञी पंचेंद्रिय तिर्यंच अर मनुष्यनिकै भी कोई कै पाइये है । असंज्ञीपर्यंत जीवनिकै यह होता ही नाहीं सो यह भी शरीरादिक पुद्गलनिकै अधीन है । बहुरि अवधि तीन भेद हैं देशावधि १ परमावधि २ सर्वावधि ३ । सो इनिविषै थोरा क्षेत्रकालकी मर्यादालिए किंचिन्मात्र रूपी पदार्थको जाननहारा देशावधि है सो कोई जीवकै होय | हैं | बहुरि परमावधि सर्वावधि अर मनःपर्यय ए ज्ञान मोक्षमार्गविषे प्रगटे हैं । केवलज्ञान 27010010210000/20/10/201 ५२
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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