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________________ मा.मा. प्रकाश तो सद्भाव है ही नाही. घात किसका किया। ताका समाधान जीवविर्षे अनादिही तें ऐसी शक्ति पाइए है जो कर्मका निमित्त न होइ तौ केवल-11 || ज्ञानादि अपने स्वभावरूप प्रवर्ते परन्तु अनादिही ते कर्मका सम्बन्ध पाइये है। तातै तिस ॥ शक्तिका व्यक्तपना न भया सो शक्तिअपेक्षा स्वभाव है ताका व्यक्त न होने देनेकी अपेक्षा | घात किया कहिए है । बहुरि च्यारि अघातिया कर्म हैं तिनिके निमित्तते इस आत्माकै बाह्य सामग्रीका सम्बन्ध बने है तहां वेदनीयकरि तो शरीरविषै वा शरीरतें बाह्य नानाप्रकार सुख | दुःखकों कारण परद्रव्यनिका संयोग जुरै है अर आयुकरि अपनी स्थितिपर्यंत पाया शरीरका | | सम्बन्ध नाहीं छुटि सके है । अर नामकरि गति जाति शरीरादिक निपजें हैं अर गोत्रकरि । | ऊँचानीचा कुलकी प्राप्ति हो हे ऐसे अघातिकर्मनिकरि बाह्य सामग्री भेली होय है ताकरि । | मोहके उदयका सहकार होते जीव सुखी दुःखी हो है। अर शरीरादिकनिके सम्बन्धते । जीवकै अमूर्त्तत्वादि खभाव अपने स्वार्थकों नाहीं करें है। जैसे कोऊ शरीरकौं पकरै तौ आत्मा | भी पकरया जाय । बहुरि यावत् कर्मका उदय रहे तावत् बाह्य सामग्री तैसें ही बनी रहै | अन्यथा न होय सकै ऐसा इनि अघातिकर्मनिका निमित्त जानना । इहां कोऊ प्रश्न करै कि कर्म तो जड़ हैं किछू बलवान नाहीं तिनिकरि जीवके स्वभावका घात होना वा बाह्य सामग्री | का मिलना कैसे संभव है । ताका समाधान
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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