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मो.मा
प्रकाश
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दिकका चा नयप्रमाणादिकका वा विशेष अर्थनिका ज्ञान नाहीं तातें तिनिकै बड़े ग्रंथनिका ||
अभ्यास तो बनि सके नाहीं । बहुरि कोई छोटे ग्रंथनिका अभ्यास बनै तो भी यथार्थ अर्थ | भास नाहीं । ऐसें इस समयविषै मंदज्ञानवान् जीव बहुत देखिये है तिनिका भला होने के
अर्थि धर्मबुद्धि” यह भाषामय ग्रंथ बनावौं हौं, बहुरि जैसे बड़े दरिद्रीकौं अवलोकनमात्र चिंतामणिकी प्राप्ति होइ अर वह न अवलोकै बहुरि जैसे कोढ़ीकू अमृत पान करावै अर वह न करै तैसें संसारपीड़ित जीवकौं सुगम मोक्षमार्गके उपदेशका निमित्त बनै अर वह अभ्यास ] न करै तौ बाके अभाग्यकी महिमा कौन करि सके। वाका होनहारहको विचारे अपने समता आवै । उक्तं च
__ साहीणे गुरुजोमे, जे ण सुणन्तीह धम्मवयणाई ।
ते धिट्ठदुद्दचित्ता, अह सुहडा भवभयविहणा ॥१॥ - खाधीन उपदेशदाता गुरुका योग जुड़ें भी जे जीव धर्म वचननिकों नाहीं सुनें हैं ते धीठ हैं अर उनका दुष्टचित्त है अथवा जिस संसारभयतें तीर्थकरादिक डरे तिस संसार भयतै रहित हैं ते बड़े सुभट हैं । बहुरि प्रवचनसारविषै भी मोक्षमार्गका अधिकार किया तहां |
प्रथम आगमज्ञान ही उपादेय कह्या सो इस जीवका तो मुख्य कर्त्तव्य आगमज्ञान है । याकों A होते तत्वनिका श्रद्धान हो है तत्वनिका श्रद्धान भए संयमभाव हो है अर तिस आगमते
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